ये ठंडी ठंडी रातें, तेरी यादें मुझे सताएं,
भीगी भीगी आँखें मेरी, तन्हा दिल को सताएं(2)
हर मोड़ पे तेरी बातें, मौसम बन के लौट आएं,
दिल की धड़कन सुन कर भी, तेरी चाहत मुझे सताएं(2)
खामोशी की चादर में, तेरी आहट गूँज जाए,
नींदों में भी तेरी सूरत, ख़्वाबों जैसे सताएं(2)
सागर की लहरें जैसे, किनारों को छू ना पाएं,
वैसे ही तेरे बिन अब, सांसें मेरी सताएं(2)
रूठे हुए ख़्वाब सारे, फिर तेरी याद बन जाएं,
हर अश्क में तेरी सूरत, आईना बन सताएं(2)
कब तक छुपा सकूंगा मैं, अपने दिल की ये तन्हाई,
हर लम्हा तेरी यादें, “जी आर” को फिर सताएं(2)
जी आर कवियुर
07 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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