Thursday, November 13, 2025

सोचा नहीं (ग़ज़ल)

सोचा नहीं (ग़ज़ल)


सपना देखा और जागा, पर सोचा नहीं,
सुंदर मुख था वो, पर जाना नहीं(2)

सुरलोक हो या परलोक, देखा या नहीं,
सुरों की राह में तुम बदलोगी, सोचा नहीं(2)

चाहे लिखा या गाया कितना भी, खत्म नहीं होगा,
ऐसा तुम एक ग़ज़ल बनोगी, सोचा नहीं(2)

अब देखूंगा या नहीं, कुछ पता नहीं,
इस लोक या परलोक में तुम हो या नहीं, सोचा नहीं(2)

हवा की तरह जब तुम मुस्कुराई,
दिल की यादें मिट जाएंगी, सोचा नहीं(2)

हर पल तुम्हारा साथ ढूँढते हुए,
मन का शून्य गीत में लौट जाएगा, सोचा नहीं(2)

जी आर की कलम से नीली पीड़ा गाई जाती है,
इस ग़ज़ल के हर सुर में दिल गूँजता है, सोचा नहीं(2)

जी आर कवियुर 
13 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

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