Monday, November 3, 2025

तरंग अनमोल (ग़ज़ल)

तरंग अनमोल (ग़ज़ल)

तेरी साँसों से निकली सरगम, दिल में बसी तरंग अनमोल,
हर इक धड़कन कहती है अब, तू ही राग, तू ही गोल(2)

तेरी आँखों की झीलों में, झिलमिल करती रौशनी,
हर सुर में तेरा नाम लिखा, हर स्वर में तेरी बंदगी(2)

तेरे बिना ये शाम सुनी, तेरे बिना सवेरा फीका,
तेरी यादों के राग में ही, जीता हूँ मैं दीवाना सीखा(2)

तेरे होंठों से निकली तान, महके जैसे सावन रात,
हर नग़्मा तुझसे जन्म लिया, हर गीत में तेरा साथ(2)

तेरी ख़ुशबू से महके मौसम, तेरे आने से रौशन जहाँ,
तेरे इश्क़ की धुन में बँधा हूँ, जैसे वीणा का कोई गान(2)

‘जी. आर.’ कहे ये रूह मेरी, बस तुझमें ही साज़ है,
तू ही मेरा राग है साजन, तू ही मेरा नाज़ है(2)

जी आर कवियुर 
03 11 2025
(कनाडा,टोरंटो)

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