पहाड़ी की चोटी पर फैलता है सूरज का उजाला
ठंडी हवाएँ गाती हैं घूमती राहों पर माला
रेतीली पगडंडियों पर खिलते हैं छोटे पौधे
पूर्वी हवा के संग चमकती हैं नदियाँ अनेक
साया मिटता है कोमल प्रभात में
हृदय भर जाता है शांति की मधुर छाँव में
पहाड़ी शिखरों पर पक्षी फैलाते हैं पंख
विभिन्न वृक्ष बिखेरते हैं अपनी सुगंध संग
हाथ उठते हैं, प्रेम को पास थामते हुए
मार्ग चमकते हैं दैनिक जीवन की समझ के साथ
अधिकार पुकारते हैं स्वतंत्रता के लिए
दुनिया उठती है, समानता की रौशनी में
जी आर कवियुर
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)
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