Sunday, November 23, 2025

चल रहा (ग़ज़ल)

चल रहा (ग़ज़ल)

तेरी राहों में खो गया मैं, सफ़र में तनहा चल रहा,
हर कदम पर तेरा नाम था, हर साँस में खुदा चल रहा(2)

चाँदनी में झिलमिलाती, रात मेरी रहबर चल रहा,
अंधेरों में भी दिखती, तेरी रोशनी चल रहा(2)

दिल की प्यास बुझाने को, पानी नहीं ये प्यार चल रहा,
तेरी यादों की धारा में, बस खुदा का अहसास चल रहा(2)

हवाओं से पूछता हूँ, रास्ता तेरी ओर कहाँ चल रहा?
हर मोड़ पर मिले अक्स तेरा, हर राह में पहचान चल रहा(2)

मुरझाए फूलों की तरह, मैं बिखर जाऊँ तेरी चाह चल रहा,
तेरे दरवाज़े की मिट्टी में, खो जाऊँ तेरी राह चल रहा(2)

जी आर ने लिखा ये सफ़र, मेरी रूह ने तुझको देखा चल रहा,
तेरे इश्क़ की ज्वाला में, मैं हर सांस में जिया चल रहा(2)


जी आर कवियुर 
23 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


No comments:

Post a Comment