बीते हुए बचपन की महक अब भी सताती है,
खोए हुए लम्हों की सूरत दिल को रुलाती है(2)
सपनों में आने वाली तस्वीरें भी सहम जाती,
आँखें जो खुलें तो हक़ीक़त दूरी दिखाती है(2)
राहों में बिखरे पलों की ख़ुशबू भी कम न हुई,
दामन से छूटे रिश्तों की चुप्पी तड़पाती है(2)
काग़ज़ की कश्ती, बारिश की बूंदें सब याद हैं,
मौसम का हर झोंका दिल को वहीं ले जाती है(2)
साए की तरह साथ चले थे जो बचपन में,
वक़्त का मेला हर रिश्ते को बहाती है(2)
जी आर, दिल में बचपन की खुशबू अब भी खिलती है,
वरना यादों की ये लहर क्यों यूँ दिल को बहाती है(2)
जी आर कवियुर
17 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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