ज़ंजीरें टूटती हैं, उजाला फैलता है
बाँधें गिरती हैं, स्वतंत्रता का रास्ता मिलता है
दुःख मिटता है, शांति में खिलता है
हृदय उठते हैं, आशा की गूँज के साथ
अंधेरा दूर होता है, तेज़ रौशनी फैलती है
हाथ जुड़ते हैं, न्याय की पुकार सुनाई देती है
मन भर जाता है करुणा के गीत से
सपनों के पंख हमें ले जाते हैं आगे
अधिकार जागते हैं, नए आरंभ का संदेश देते हैं
विचार बढ़ते हैं सत्य की मिट्टी में
मार्ग चमकते हैं समानता की यात्रा में
दुनिया जागती है दासता-मुक्त भविष्य के लिए
जी आर कवियुर
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)
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