Wednesday, November 26, 2025

अनंत की ओर

अनंत की ओर 

क्या गरजता समंदर हँस रहा है?
या लहर तट पर रो रही है?
क्या मन के भीतर कोई सूक्ष्म तार
अनंत धैर्य से सुन रहा है?

जब एक हवा किनारे से गुजरती है,
क्या कोई बाती बिना बुझें जलती रहती है?
क्या नरम पत्तियाँ हवा की ताल पर
धीरे से झूमती रहती हैं?

अनंत, अज्ञात, और वर्णनातीत—
क्या कोई सच में उसे जान पाया है?
क्या यह पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है?
क्या सूरज भी अपनी ही दिशा में चलता है?
और क्या कुछ भी उसके जाने बिना होता है?

जो अपने को सबसे बड़ा समझता है,
क्या उसके अहंकार और दिखावे की कोई सीमा है?
अग्नि, आकाश, जल, वायु, पृथ्वी—सबको अपना कहने वाला,
अंत में सिर्फ छह फुट मिट्टी में सिमट जाता है।

जी आर कवियुर 
(26 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

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