Tuesday, November 11, 2025

अकेले विचार – 123

अकेले विचार – 123

फिर बनो वही

जब बादल महलों की तरह आसमान में थे,
और हँसी बिना कारण नृत्य करती थी।
सुबहें चमकीली, खेलों से भरी,
और सपने दौड़ते थे दिन के उजाले में।

छोटे तालाबों में गूंजते गीतों की तरह,
और अनजाने मुस्कानों की मिठास।
सितारे दोस्त बनकर धीरे चमके,
और हर पल सपना बनकर बिखरा।

अब आँखें बंद करो, चिंता दूर हो जाए,
सुख अनुभव करो जैसे बारिश के बाद सूरज।
भीतर का बच्चा जानता है ये राग,
फिर बनो वही, मुक्त और खुशहाल।

जी आर कवियुर 
10 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

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