फिर बनो वही
जब बादल महलों की तरह आसमान में थे,
और हँसी बिना कारण नृत्य करती थी।
सुबहें चमकीली, खेलों से भरी,
और सपने दौड़ते थे दिन के उजाले में।
छोटे तालाबों में गूंजते गीतों की तरह,
और अनजाने मुस्कानों की मिठास।
सितारे दोस्त बनकर धीरे चमके,
और हर पल सपना बनकर बिखरा।
अब आँखें बंद करो, चिंता दूर हो जाए,
सुख अनुभव करो जैसे बारिश के बाद सूरज।
भीतर का बच्चा जानता है ये राग,
फिर बनो वही, मुक्त और खुशहाल।
जी आर कवियुर
10 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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