Monday, November 17, 2025

चमेली हो तुम (ग़ज़ल)

चमेली हो तुम (ग़ज़ल)

प्यार की गलियों में महकता चमेली हो तुम
दिल की बगिया में हर खिला चमन हो तुम

चाँदनी रात में तेरी छवि तैरती है समंदर की लहरों पर
किनारे की रेत पर तेरी यादों का पैगाम हो तुम

तितली जैसे नाज़ुक, कोयल की मीठी तान में बसी
हर पेड़-पौधे की हरी छाँव में मुस्कान हो तुम

मोर की पूँख फैलती जब हवाओं में नाचती है
मेरी तन्हाई में तेरी खुशबू की पहचान हो तुम

पर्वत की चोटियों पर खिलते सूरज की किरणों में
हर सुबह मेरे दिल की सुबह का अरमान हो तुम

जी आर के हर खुशी में वह ही समाया है
उसके बिना जीवन अधूरा सा लगता है

जी आर कवियुर 
15 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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