सुबह की रोशनी में खिले फूल,
ओस की मिठास हवा में बिखरी।
संध्याकाल के सुनहरे रंग में,
आकाश चमके कोमल प्रकाश से।
पक्षी गाते हैं हृदय की गहराई से,
नदी की धारा में खिलती दिन की हँसी।
फूलों के स्पर्श से जीव जागता है,
रंग बुनते हैं सपनों की सुंदरता।
इंद्रधनुष के रंगों पर नाचते तितलियाँ,
रेत के तट पर चाँदनी की राह।
दुनिया के छुपे सौंदर्य में,
वसंत गाता है आनंद से, सुंदर और निर्मल।
जी आर कवियुर
10 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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