सबेरे की मिठास हवा में फैल रही है
फूल गा रहे हैं संध्या के पेड़ों संग
छायादार वृक्ष प्यार से जीवित हैं
नदी के पानी में सपनों की तरंग है
धीरे बहती नदी धीरे से बताती है
पक्षियों के गीत दिल को छू जाते हैं
बादल धूप में नृत्य कर रहे हैं
छोटी बूंदें जीवन में खेल बिखेरती हैं
गर्मी की खुशबू चारों ओर फैल रही है
नई राहों में यादें नाच रही हैं
पंखों वाले क्षण सपनों की ओर उड़ते हैं
यात्री का दिल मधुरता में गीत गाता है
जी आर कवियुर
12 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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