Wednesday, November 5, 2025

“विरह का पल”

 “विरह का पल”

एक पल दिल से होकर गुज़र गया,
मौन शब्द कमरे में छिपे हैं कहीं।
यादें हवा में ठहरी सी लगतीं,
नज़रें खोजतीं हैं अनंत गगन में तन्हाई।

समय बढ़ता चला दूर दिशाओं तक,
आकांक्षा की लहरें मन में गूंजती हैं।
निशा पुकारती भूले सपनों को फिर,
तारे मुस्काते हैं मंद उजास में।

हर सांस में छिपा है एक दर्द गहरा,
क्षण धुंधले होकर खो जाते कहीं।
आशा झिलमिल करती फीकी किरण सी,
प्रेम अडिग रहता हर पल के पार।

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025

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