समय ने जो संभाला, वो यादों की परछाइयाँ हैं,
बरसात की बूंदों सा दिल में उतरता एहसास है।
चाँदनी मुस्कुराती राहों पर कहीं,
एक नया सपना जन्म लेता है वहीं।
मिट्टी की ख़ुशबू में बीते पल महकते हैं,
नदी के सुरों में गीत बहते हैं।
गर्म हवाओं में सोचें उड़ जाती हैं,
ख़ामोशी में फिर मोहब्बत जग जाती है।
मुरझाए फूल भी कहानी सुनाते हैं,
स्पर्श से जीवन फिर खिल उठता है।
लहरों में यादें जागतीं कहीं,
समय ने जो संभाला, वो दिल में चमकता है।
जी आर कवियुर
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025
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