Saturday, November 22, 2025

आग और मत बढ़ा, (ग़ज़ल)

आग और मत बढ़ा, (ग़ज़ल)

आग और मत बढ़ा, दिल तो पहले ही जल रहा,
धुआँ‑धुआँ सा हूँ मैं, तन्हाई के आलम में ढल जा रहा(2)

तेरी यादों की चिंगारी, मेरे सीने में घर बनाती,
खामोशी की राख में, मेरी साँसें खोजती जा रही(2)

रात की नसों में एक‑एक कर शिकन उतरती,
यादों का धुआँ, आँखों के रास्ते बहता जा रहा(2)

चाँदनी भी आज कुछ छुप-सी सी लगती है,
तेरी यादों की रोशनी में रात ढलता जा रहा(2)

हवाओं में तेरी खुशबू जैसे गुनगुनाती है,
हर कोने में तेरा एहसास बहता जा रहा(2)

सन्नाटों में तेरी हँसी गूंजती है,
दिल की गली में तेरी यादों का रास्ता चलता जा रहा(2)

जी आर ने लिखा, दिल से आवाज़ सुना जा रहा,
तेरी हर खुशी बसाई है यादों में बहता जा रहा(2)


जी आर कवियुर 
22 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


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