Saturday, November 29, 2025

तलाशता हूँ (ग़ज़ल )

तलाशता हूँ (ग़ज़ल )

खो गया हूँ इस शहर की भीड़ में है
तुझे खोजा इस यादों की भीड़ में है

सन्नाटों में तेरी आवाज़ तलाशता हूँ
भीगे हुए ख्वाबों में तुझको पाता हूँ

रास्तों की धूल में तेरी खुशबू बसी है
हर मोड़ पर तेरी यादें गुमसुम चलती हैं

नींदें चुराकर तूने मेरी रातें रंगीं
अधूरी बातें तेरे नाम ही कहती हैं

हर तस्वीर में तेरा चेहरा दिखता है
दिल की तन्हाई भी अब तुझसे ही मुस्कुराती है

जी आर की मोहब्बत ने ये हकीकत लिख दी
तन्हाई में भी तेरे ख्वाब मेरे साथी हैं

जी आर कवियुर 
28 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

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