गुलाम हूँ ग़ज़लो का, क्या बताए
हर धड़कन में तू ही बसे, क्या बताए (2)
साँसों में घुली तेरी खुशबू, क्या बताए
हर पल दिल में तेरा नूर, क्या बताए(2)
रात की चुप्प में तेरी तस्वीर है, क्या बताए
चाँदनी में छुपा तेरा असर, क्या बताए(2)
ख़्वाबों की गलियों में तू मुस्काए, क्या बताए
हक़ीक़त में भी तू ही समाए, क्या बताए(2)
तेरी यादों का आलम न पूछो, क्या बताए
हर लफ़्ज़ में तू ही क्यों आए, क्या बताए(2)
जी आर की मोहब्बत के चर्चे निराले
हर लफ़्ज़ में तू ही समाए, क्या बताए(2)
जी आर कवियुर
11 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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