Tuesday, November 18, 2025

“कहीं यादों में कहीं”

“कहीं यादों में कहीं”

कहीं जन्मों की यादों में कहीं
कहीं बिखरी हुई बातें कहीं
लिखे बिना बीते हर लम्हें
बस यादों में ही रह गए कहीं

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

एकांत की नर्मी में छुपा
खामोशी में एक आवाज़ ढूँढी
हाज़िरी दिल में भर गई
मधुर स्मृति जैसी कोई गूँज उठी

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

हवाओं की छुअन में खो गया
दिल थमते ही प्रेम जागा
सजीव आँसुओं में समाया
भूल की परछाई जैसे गायब हो गई

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

समय की लहरों और व्यस्तता में थक गया
भूले हुए लम्हों की तलाश में आया
मन में बँधी हुई सोचें खुलीं
सपने जैसी छवि फिर नजर आई

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

नई बारिश में यादों की ठंडक
अप्रत्याशित गहराइयों में परछाई
पुरानी खुशबुएँ रास्तों में फैलीं
एकात्म यात्रा में फिर चमक उठी

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

जी आर कवियुर 
18 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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