वक़्त बहा, साया संग सिमटा,
कोमल दिन अब मौन में लिपटा।
बिन पंखों के सपने सो गए,
दिल के भीतर स्वर खो गए।
बच्चे दूर, बस यादें रह गईं,
पुरानी किताबों में ख़ुशबू बस गई।
आँखों में अब धुंधली सी छवि,
हाथों में काँपती ज़िंदगी अभी।
अब दिल में मैं ही रह गया,
शांति का आलम छा गया।
वक़्त ने सिखाया — ख़ुद ही काफ़ी हूँ,
इस तन्हाई में सुकून पा लिया हूँ।
जी आर कवियुर
05 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
No comments:
Post a Comment