भोर में चिड़ियों का गीत गूंजता,
नई पंक्तियाँ हृदय में जगमगाती(2)
चाय का कप हाथ में, विचार बहते,
हल्की हवा में मिठास फैलती, आत्मा चमकती(2)
किताबें खुलतीं, पुरानी कविताएँ याद आतीं,
सफर की राहों में दृश्य खिलते(2)
संध्या की चाय, मित्रों की हँसी,
तारों की रोशनी पन्नों पर गिरती(2)
कविता आती है, मुस्कान बिखेरती,
अगर अनदेखी हो, तो अलग चेहरे के साथ चली जाती(2)
बाहर हवा में श्लोक गूँजते,
जीवन के छोटे-छोटे पल गीत बन जाते(2)
हर विचार कविता में फूल बनकर खिलता,
कविता की लय, मन की खिड़की पर दस्तक देती(2)
जी आर कवियुर
12 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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