खुदा को ढूँढ ले तू खुद में,
खुशियों की राह मिले खुद में(2)
मन की अगन जगे जब भीतर,
ज्योति का दीप जले खुद में(2)
पथ के काँटे हों जितने भी,
सहन का बल मिलता खुद में(2)
भीड़ के शोर में खो मत जाना,
सच्चा स्वर सुनता खुद में(2)
बाहरी राहों में मत भटके,
सत्य का स्वर मिलता खुद में(2)
जप–तप, मंदिर, तीर्थों से बढ़कर,
प्रेम का सागर बहता खुद में(2)
मन की गाँठें जब खुल जातीं,
शांति का पल खिलता खुद में(2)
जी आर कहता— प्रभु बाहर क्या,
सारा जग छिपा है खुद में(2)
जी आर कवियुर
19 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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