डगमगाए चाँद-सितारे, नींद का नशा चढ़ आया,
हज़ारों सपने ला कर तू, आँखों को जगा ही गया(2)
तेरी खुशबू रात की शाखों पर जब भी लहराई,
हर एक झोंका दिल की गलियों में तेरा नाम लिख गया(2)
ख़ामोशी में तेरे कदमों की आहट कुछ ऐसा बोली,
जैसे बरसों से सूखे दिल में कोई सावन उतर गया(2)
नज़र मिली तो फ़ासलों के सारे नक़्शा बदल गए,
मुझको लगा कि ये जहाँ भी तेरे ही साथ चल गया(2)
तेरे जाने के बाद भी कमरे में तेरी परछाईं,
हर पल मेरे हौंसले को टूट कर फिर से संवर गई(2)
जी आर के दिल की पतंग तेरी डोर में ही बँध गया,
तू मुस्कुराया बस इतना, साँसों का मौसम बदल गया(2)
जी आर कवियुर
20 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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