“छः फ़ुट की सच्चाई”
अंत में इंसान को बस छः फ़ुट मिट्टी ही मिलती है,
अनाथ दिनों की परछाइयाँ भीड़ में खो जाती हैं।
अहंकार रात की हवा में उड़ती धूल बन जाता है,
दिल ख़ामोशी में ढलकर एक पुरानी याद बन जाता है।
शोहरत और पद भी मिट्टी में घुल जाते हैं,
गाए हुए गीत, बँटी हुई हँसी राख बन उड़ जाते हैं।
ज़िंदगी एक दरवाज़ा खोलती है, दूसरा चुपचाप बंद करती है,
जन्म से मृत्यु तक पल ही तो हमारे साथी हैं।
जब आख़िर में हाथ खाली रह जाते हैं इस सफ़र में,
सिर्फ़ प्यार बचता है — बाक़ी सब अनाथ धूल बन जाता है।
जी आर कवियुर
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)
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