Saturday, November 15, 2025

दिल्ल में समाई है (ग़ज़ल)

दिल्ल में समाई है (ग़ज़ल)


दिल में समाई है तन्हाई की परछाई है
रात भी जलती है, दिन भी उसी की परछाई है(2)

तेरी मोहब्बत ने हर साँस को रंगाई है
दर्द की गहराई में भी तेरी ही आहट समाई है(2)

रूह के आईने में तेरी हवा कुछ कहती है
ख़्वाब की गलियों में तेरी ही किरन जगाई है(2)

दिल की उजड़ी राहों पर तेरी सदा ठहरती है
वक्त की रेतों में भी एक याद कहीं छुपाई है(2)

तेरी क़रीबी का जादू आज भी दिल पर है
मेरी हर धड़कन ने तेरा नाम ही अपनाई है(2)

जी आर को मोहब्बत की पहचानी रुसवाई है
वो भी क्या करे—उसके दिल में तेरी ही परछाई है(2)

जी आर कवियुर 
15 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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