आख़िर इस दिल के दर्द की दवा क्या है,
जो आँखें यूँ समुंदर-सी बहें—असर ये क्या है?(2)
रातें भी मेरी साँसों की थकन पूछती हैं,
चाँद की चुप्पी में छुपा कौन सा सफ़र ये क्या है?(2)
तेरी याद का बादल भी बरसता नहीं अब,
दिल की वीरानी में ठहरा हुआ शहर ये क्या है?(2)
राहों में तेरे क़दमों की गूँज जागती है,
सुनता हूँ जो ख़ामोशी में—ये असर ये क्या है?(2)
आँखों में तेरी परछाइयाँ क्यों लौट आती हैं,
बिखरा हुआ मुझमें फिर वही नज़र ये क्या है?(2)
जी आर को भी ये राज़ अभी तक समझ न आया,
दिल को तेरी महफ़िल से इतनी लगन क्यों है, क्या है?(2)
जी आर कवियुर
19 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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