Monday, November 3, 2025

आई थी, (ग़ज़ल)

आई थी, (ग़ज़ल)

वो तो खुशबू की तरह आई थी,
ज़ुल्फों से लहराई हवा आई थी(2)

मन के आँगन में हलचल सी थी,
शायद वही याद यहाँ आई थी(2)

सपनों में उसकी परछाई थी,
जैसे कोई राग सुनाई थी(2)

पत्तों ने भी कुछ कहा जैसे,
उसकी हँसी फिर सुनाई थी(2)

दिल ने माना वो पल सच्चा था,
जब उसकी छवि मुस्काई थी(2)

हर धड़कन में नाम वही है,
कह गया जी आर, वही आई थी(2)

जी आर कवियुर 
02 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

No comments:

Post a Comment