स्मृतियों की गलियों में,
बीते कल का हाथ थामे,
मैं खोजता हूँ उस "मैं" को
जो शरीर के भीतर सोया है।
मौन में उठी आत्मा की गूंज,
श्वास में बहती एक यात्रा बनी,
विचार ढूँढते हैं अपना आसरा
रंगहीन उजालों की दिशा में।
समय से परे उस पल में
सत्य का स्पर्श मिल गया,
वहाँ देखा मैंने स्वयं को —
देह से परे, अनंत आत्मा में।
जी आर कवियुर
05 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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