दिल से दिल के रास्ते ढूँढ़ता चला,
दिलगी क्या बताऊँ, भटकता चला(2)
सांस में उसके नाम की खुशबू रही,
हर दुआ से मैं उसे माँगता चला(2)
चाँदनी ने भी रोकना चाहा मुझे,
उसकी गलियों में मैं बहकता चला(2)
ख़्वाब थे आँखों में, दिल था बेख़बर,
वो जहाँ कह गई, मैं समझता चला(2)
हर सितम को भी प्यार का नाम दे,
मुस्कुरा के मैं उसे चाहता चला(2)
अब 'जी आर' भी उसी में खो गया,
ज़िंदगी की तरह उसे पढ़ता चला(2)
जी आर कवियुर
07 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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