Sunday, November 30, 2025

सुबह की बर्फबारी

मौन किरणों-से गिरती बर्फ आसमान को छूती है,
बालकनी से दिखती शांति मन को सहलाती है,
टोरण्टो कोमल चादरों में धीरे-धीरे जगता है,
छतों पर सर्दियों की चाँदी-सी लकीरें उतरती हैं।

ठंडी सुबह में सांसें हल्के धुंए-सी घुल जाती हैं,
कदमों के निशान नरम बर्फ में खो जाते हैं,
बादल चमकती ठंडी राहें बिखेरते चलते हैं,
पेड़ खड़े हैं श्वेत सौम्यता में लिपटे हुए।

जमी हुई हवा में क्षितिज हल्का-सा चमकता है,
दूर की प्रतिध्वनियाँ सफेद परदों में खो जाती हैं,
प्रकृति शांत अद्भुत चित्रों को गढ़ती रहती है,
दिल सुबह की बर्फबारी में उजास पाते हैं।


जी आर कवियुर 
30 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

Saturday, November 29, 2025

तलाशता हूँ (ग़ज़ल )

तलाशता हूँ (ग़ज़ल )

खो गया हूँ इस शहर की भीड़ में है
तुझे खोजा इस यादों की भीड़ में है

सन्नाटों में तेरी आवाज़ तलाशता हूँ
भीगे हुए ख्वाबों में तुझको पाता हूँ

रास्तों की धूल में तेरी खुशबू बसी है
हर मोड़ पर तेरी यादें गुमसुम चलती हैं

नींदें चुराकर तूने मेरी रातें रंगीं
अधूरी बातें तेरे नाम ही कहती हैं

हर तस्वीर में तेरा चेहरा दिखता है
दिल की तन्हाई भी अब तुझसे ही मुस्कुराती है

जी आर की मोहब्बत ने ये हकीकत लिख दी
तन्हाई में भी तेरे ख्वाब मेरे साथी हैं

जी आर कवियुर 
28 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

यादों का सिलसिला” (ग़ज़ल)

यादों का सिलसिला” (ग़ज़ल)

ग़िला-शिकवे के फासले में भी,
तेरी यादों का सिलसिला है बाकी अभी।

राहों में तन्हाई की खुशबू बिखरी है,
हर मोड़ पर तेरी परछाई बाकी अभी।

ख़ामोशी की भीड़ में तेरी हँसी सुनाई देती है,
दिल की दीवारों पर तेरा नूर बाकी अभी।

वक्त के बहाव में भूल जाने की कोशिश की,
पर दिल में तेरी यादों का साया बाकी अभी।

चांदनी रातों में तेरी बातों का असर है,
सपनों की दुनिया में तू मौजूद अभी।

हर शेर में बस तेरा नाम मैं गुनगुनाऊँ,
ग़ज़ल के हर मोड़ पर जी आर बाकी अभी।

जी आर कवियुर 
29 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

“ये इश्क़ भी क्या चीज़ है” (ग़ज़ल)

“ये इश्क़ भी क्या चीज़ है” (ग़ज़ल)

ये इश्क़ भी क्या चीज़ है, हर बार समझाता हूँ,
मैं तुमको भुलाने के लिए कितना सँभल - सँभल जाता हूँ(2)

तेरी ही तरफ़ चल पड़ती हैं राहें चाहे जहाँ जाऊँ,
हर मोड़ पे तेरी यादों का इक मेला-सा सज जाता हूँ(2)

दिल में दबी ख्वाहिशें तेरी, पल-पल सरगर्मी लाती हैं,
सूने कमरों में तेरी धुन बनकर हलचल मच जाता हूँ.(2)

रातों की चादर जब ढलती है, तन्हाई गुनगुनाती है,
तेरे लहजे की परछाईं बन मैं खुद में ही खो जाता हूँ(2)

तनहाई में तेरी आवाज़ें फिर दिल को भरमाती हैं,
ख़ामोशी के सायों में मैं ख़ुद को ढूँढता-मिट जाता हूँ(2)

जी आर से पूछो क्या खोया, क्या पाया इस राह-ए-इश्क़ में,
तेरे बाद भी हर पल तेरा ही नाम वो दोहराता हूँ(2)

जी आर कवियुर 
27 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

Friday, November 28, 2025

यादों में (ग़ज़ल)

यादों में (ग़ज़ल)

तुम बिना इस जीवन में ग़म भरा है यादों में,
क्यों सताती है हर धड़कन मुझे यादों में।

जीवन सूना लगता है तुम्हारे बिना,
फूलों और चाँदनी भी खो गई हैं यादों में।

तुमको ही सोचकर मैं हर पल कटता हूँ,
उम्मीदों और भूलों में बस जी रहा हूँ यादों में।

हर दिन मैं तुम्हारी मौजूदगी ढूँढता हूँ,
अंधेरों में भी तुम्हारा साया रोशनी बनता है यादों में।

तुम बिना पूरा जीवन अधूरा है,
तुम्हारे प्यार की धुन में खुशियाँ गूँजती हैं यादों में।

आशाओं के आसमान में तुम सितारा बनकर चमकती हो,
सभी खुशियाँ भरपूर होती हैं यादों में।

तुम्हारी मधुर मुस्कान से मन भर जाता है,
तुम्हारे रास्तों में मैं राह तलाशता हूँ यादों में।

आज जी आर ने लिखी ये पंक्तियाँ दिल में बसी,
दिल भर जाता है हर पल, खोया रहता हूँ यादों में।


जी आर कवियुर 
28 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

‘तेरी ख़ामोशी में (ग़ज़ल)

‘तेरी ख़ामोशी में (ग़ज़ल)

तेरी ख़ामोशी में भी कुछ बातें छुपी मिलती हैं,
धड़कनों की दस्तक से ये सूरत खुली मिलती हैं।

तेरे साये की नरमी अब भी साथ मेरे चलती है,
रातें तेरी यादों से ही महकी हुई मिलती हैं।

तेरे जाने की आहट ने मौसम को बदल डाला,
अब हवाओं में तेरी खुशबू ही घुली मिलती हैं।

दिल की गलियों में तेरे कदमों की रौनक है,
तेरे बिन ये धड़कनें भी कितनी अधूरी मिलती हैं।

जो रिश्ते दूर रहकर भी पास ही लगते हैं,
ऐसी मोहब्बतें हर दिल में कहाँ कभी मिलती हैं।

तेरी आँखों की चमक से ही शामें सजती थीं,
तेरे बिन ये रातें भी कितनी फीकी-सी मिलती हैं।

हर लम्हा तेरी चाहत को ही आईना मानता हूँ,
तेरे बिन ये सांसें भी जैसे बंद पड़ी मिलती हैं।

जी आर की हर ग़ज़ल में तेरी कहानी बसती है,
लफ़्ज़ लिखूँ तो तेरी यादें ही क़लम में उतरती हैं।’


जी आर कवियुर 
27 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

स्मृतियों का खुला दरवाज़ा (ग़ज़ल)

स्मृतियों का खुला दरवाज़ा (ग़ज़ल)

खुला है यादों का दरवाज़ा,
तुम आए बिना मैं खड़ा हूँ उस दरवाज़ा।

हर रात की ख़ामोशी में तेरी यादें,
मन में गूंजती, जैसे कोई पुराना दरवाज़ा।

वो बहती हवा, वो बूँदों की आवाज़,
हर पल मुझे खींचती उस खुलते दरवाज़े की ओर।

छाँव में बैठा देखता तुम्हें,
हर साँस में बसता वही प्यार का दरवाज़ा।

होंठों पर मुस्कान की खुशबू,
आँखों में बसी तुम्हारी यादें,
हर धड़कन में गूँजता वही दरवाज़ा।

सन्नाटे में गुनगुनाता मन,
तेरी बातें सुनकर खो जाता हर दरवाज़ा।

अभी भी सुनता हूँ मैं अंदर की गूँज,
वो चुप रहकर कहती कहानी, वही दरवाज़ा।

मोहब्बत का अहसास जो भरता है हृदय,
जी आर ने देखा, महसूस किया, यही दरवाज़ा।

जी आर कवियुर 
(28 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)



बरसात (ग़ज़ल)

बरसात

बरसात ने बहा दिया,
आँखों में यादें बहा दिया।

दिल में सुरों का गान गाया,
चाँदनी बिखरी, साया फैलाया।

बरसात ने बहा दिया,
हवा में शाम का मुस्कान बहा दिया।

नींद में सपनों ने रंग भरे,
बिना जाने जगी, धीरे आँखें खोले।

तुम भी चले गए, कहीं छुप गए,
अँधेरे में उजाले ने बहा दिया।

बरसात ने बहा दिया,
प्यार की यादों में हर दिल ने बहा दिया।

जिंदगी की राहों में लिखी यादों की बात में,
जी आर की मोहब्बत चाँदनी की तरह बहा दिया।

जी आर कवियुर 
(28 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

Thursday, November 27, 2025

कविता : मौन प्रहरी

 कविता : मौन प्रहरी: एक क्रिसमस चिंतन



प्रस्तावना

ऊँचे नटक्रैकर के पास इतिहास, वीरता और उत्सव की खुशी मिलती है। यह लकड़ी का प्रहरी, क्रिसमस की खुशियों का प्रतीक, दूर के सैनिकों की यादें, विविध संस्कृतियाँ और शाश्वत परंपराएँ लेकर खड़ा है। शांत निरीक्षक महसूस कर सकता है कि कैसे अतीत और वर्तमान कोमल उत्सव में मिलते हैं।


कविता : मौन प्रहरी


ऊँचे नटक्रैकर के पास खड़ा एक शांत दृश्य,

कवच चमकता है पुरानी यादों के ज्वाल में।

क्रिसमस की खुशी नाचती है हर प्रकाश में,

गीतों और हंसी से भर जाते हैं हृदय रात में।


जर्मन सैनिकों की कथाएँ धीरे उठती हैं,

अमेरिकी गार्ड की शान सबकी आँखों में चमकती है।

भारतीय वीरता उभरती है रक्तरंजित मैदान में,

ढाल चमकती हैं इतिहास की जीवंत कहानी में।


लकड़ी का प्रहरी चमकता है उजाले में,

सांस्कृतिक पुल जोड़ता है दुनिया में।

इतिहास कहता है सेनापतियों की राह,

क्रिसमस फैलाए प्यार, खोलें हर दिल की चाह।


जी आर कवियुर 

(27 

11 2025)

(कनाडा, टोरंटो)

भूमि में खिलना”

भूमि में खिलना”

नई उपलब्धियाँ खिलती हैं धरती पर
हवा में फैलती है खुशबू का असर
खेतों में गूंजते हैं चिड़ियों के गीत
नदियाँ जागती हैं, बहती हैं तालमेल में

छोटे पौधे खिलते हैं सूरज की रोशनी में
हृदय भर जाता है खुशी की मिठास से
सपने उड़ते हैं कल के पंखों पर
रेत चमकती है रोज़मर्रा के दृश्य में

हाथ मिलते हैं, दोस्ती की राह खोजते
अधिकार पुकारते हैं सच्ची ज़िंदगी के लिए
समानता फैलती है हरियाली की तरह
दुनिया उठती है प्रेम और गर्व के साथ

जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

“पहाड़ी की चोटी पर”

पहाड़ी की चोटी पर” 

पहाड़ी की चोटी पर फैलता है सूरज का उजाला
ठंडी हवाएँ गाती हैं घूमती राहों पर माला
रेतीली पगडंडियों पर खिलते हैं छोटे पौधे
पूर्वी हवा के संग चमकती हैं नदियाँ अनेक

साया मिटता है कोमल प्रभात में
हृदय भर जाता है शांति की मधुर छाँव में
पहाड़ी शिखरों पर पक्षी फैलाते हैं पंख
विभिन्न वृक्ष बिखेरते हैं अपनी सुगंध संग

हाथ उठते हैं, प्रेम को पास थामते हुए
मार्ग चमकते हैं दैनिक जीवन की समझ के साथ
अधिकार पुकारते हैं स्वतंत्रता के लिए
दुनिया उठती है, समानता की रौशनी में

जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)


मुक्ति दिवस”

मुक्ति दिवस” 

ज़ंजीरें टूटती हैं, उजाला फैलता है
बाँधें गिरती हैं, स्वतंत्रता का रास्ता मिलता है
दुःख मिटता है, शांति में खिलता है
हृदय उठते हैं, आशा की गूँज के साथ

अंधेरा दूर होता है, तेज़ रौशनी फैलती है
हाथ जुड़ते हैं, न्याय की पुकार सुनाई देती है
मन भर जाता है करुणा के गीत से
सपनों के पंख हमें ले जाते हैं आगे

अधिकार जागते हैं, नए आरंभ का संदेश देते हैं
विचार बढ़ते हैं सत्य की मिट्टी में
मार्ग चमकते हैं समानता की यात्रा में
दुनिया जागती है दासता-मुक्त भविष्य के लिए

जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

कारवाँ है (ग़ज़ल)

कारवाँ है (ग़ज़ल)

ज़िंदगी ज़िंदादिलों का कारवाँ है,
जीत–हार की भूल — ये जाना भी कारवाँ है(2)

चलते रहो तो हर दर्द भी नभ का उजाला,
हर लम्हा ही तन्हा-सा कारवाँ है(2)

सच्चाई का रस्ता कभी सूना नहीं होता,
झूठ की हर चकाचौंध बस धोखा कारवाँ है(2)

हर मोड़ पे इंसान को मिलता है तजुर्बा,
और हर तजुर्बा दिल को नया रस्ता कारवाँ है(2)

क्षणिक ये जहाँ, इसका फ़साना भी क्षणिक,
बेख़ौफ़ जीना ही जीने का असली दावा कारवाँ है(2)

जी.आर. ने फ़लसफ़े की राह यूँ ही चुनी है,
उनके दिल में हर लफ़्ज़ सदा ज़िंदा कारवाँ है(2)


जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

“छः फ़ुट की सच्चाई”


“छः फ़ुट की सच्चाई”

अंत में इंसान को बस छः फ़ुट मिट्टी ही मिलती है,
अनाथ दिनों की परछाइयाँ भीड़ में खो जाती हैं।

अहंकार रात की हवा में उड़ती धूल बन जाता है,
दिल ख़ामोशी में ढलकर एक पुरानी याद बन जाता है।

शोहरत और पद भी मिट्टी में घुल जाते हैं,
गाए हुए गीत, बँटी हुई हँसी राख बन उड़ जाते हैं।

ज़िंदगी एक दरवाज़ा खोलती है, दूसरा चुपचाप बंद करती है,
जन्म से मृत्यु तक पल ही तो हमारे साथी हैं।

जब आख़िर में हाथ खाली रह जाते हैं इस सफ़र में,
सिर्फ़ प्यार बचता है — बाक़ी सब अनाथ धूल बन जाता है।


जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, November 26, 2025

अनंत की ओर

अनंत की ओर 

क्या गरजता समंदर हँस रहा है?
या लहर तट पर रो रही है?
क्या मन के भीतर कोई सूक्ष्म तार
अनंत धैर्य से सुन रहा है?

जब एक हवा किनारे से गुजरती है,
क्या कोई बाती बिना बुझें जलती रहती है?
क्या नरम पत्तियाँ हवा की ताल पर
धीरे से झूमती रहती हैं?

अनंत, अज्ञात, और वर्णनातीत—
क्या कोई सच में उसे जान पाया है?
क्या यह पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है?
क्या सूरज भी अपनी ही दिशा में चलता है?
और क्या कुछ भी उसके जाने बिना होता है?

जो अपने को सबसे बड़ा समझता है,
क्या उसके अहंकार और दिखावे की कोई सीमा है?
अग्नि, आकाश, जल, वायु, पृथ्वी—सबको अपना कहने वाला,
अंत में सिर्फ छह फुट मिट्टी में सिमट जाता है।

जी आर कवियुर 
(26 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

दिल की चिलमन से” (ग़ज़ल)

दिल की चिलमन से” (ग़ज़ल)

तू मेरे दिल की चिलमन से उभरती दुआ लगे,
तेरा नशा मुझे में उतरकर नग़्मों-सा ही लगा लगे(2)

तेरी आहट से धड़कन को नया ये साज़ बजा लगे,
तेरे कदमों की ख़ुशबू से हर मौसम हरा लगे.(2)

तेरी पलकों की छाँव में हर ग़म भी हल्का लगे,
तेरे चेहरे की रौशनी में दिल खुद को पूरा लगे(2)

तेरी राहों में चलते ही इक अपनापन सा लगे,
तेरे होने से ये दुनिया भी थोड़ी अपनी लगे(2)

तेरे बिना ये पल-पल जैसे ठहरी हुई हवा लगे,
तेरे लफ़्ज़ों के आने से जीना फिर नया लगे(2)

तेरी मुस्कान की रौशनी में हर दर्द दवा लगे,
तेरी आँखों की गहराई में दुनिया भी सजा लगे(2)

जी.आर. तेरी यादों में डूबा दिल आज भी रमा लगे,
तेरी मोहब्बत की छाँव में जीना क्या ख़ूब लगा लगे(2)

जी आर कवियुर 
26 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

अकेला और दुकेला" (ग़ज़ल)

अकेला और दुकेला" (ग़ज़ल)

जब लगे खुद को दुनियासे अकेला
तब देख लेना आईने में झलके दुकेला(2)

रात की ख़ामोशी में भी लगे दिल अकेला
हर सन्नाटे में छुपा कोई अपना दुकेला(2)

तारों की चुप्पियों में भी गूँजता मन अकेला
हर पल में बसी यादें, कभी मीठा, कभी दुकेला(2)

सन्नाटे की गलियों में भी बहती अनकही बातें अकेला
हर धड़कन में छुपा है दर्द और सौगात दुकेला(2)

सपनों के परदे पर मुस्कान और तन्हाई अकेला
हर दाग़ में बसी यादों की परछाई दुकेला(2)

जी आर कहता है, ये दिल न जाने किसको चाहा अकेला
आँखों में बसे कई चेहरे, पर हर एक से रहा दुकेला(2)

जी आर कवियुर 
26 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

प्यार की रूहानी सफर (सूफी ग़ज़ल)

प्यार की रूहानी सफर (सूफी ग़ज़ल)

लहरों में बिखरी है तन्हाई की दास्तान भुला दो,
दिल के हर साये में इक ख़ुदा का निशान भुला दो(2)

रूहानी रंगों में जो भी तेरे नाम के तराने,
उन सांसों के मीठे अफ़साने अब भुला दो(2)

जमाने की भीड़ में खोये जो निशाने-ए-इश्क़,
उन हवाओं के सभी फ़साने अब भुला दो(2)

जो दिल ने खोजे थे राह-ए-हक़ीक़त के बहाने,
उन तलाशों के पुराने फ़साने भुला दो(2)

शब-ओ-रोज़ में जो चमकते थे इश्क़ के सितारे,
उन नूरानी पुराने तराने भुला दो(2)

जी आर के हर दिल के अफ़साने भुला दो,
अब ग़ज़ल में भी तुम्हारे ही फ़साने भुला दो(2)

जी आर कवियुर 
26 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

लोग कहते हैं भुला दो (ग़ज़ल)

लोग कहते हैं भुला दो (ग़ज़ल)


लोग कहते हैं कि यादों के तराने भुला दो,
लगता है हमें वो दिल के निशाने भुला दो(2)

तेरी बातों के सभी मीठे फ़साने भुला दो,
जो दिल ने लिखे थे रातों के अफ़साने भुला दो(2)

तेरी राहों में बिछे थे जो पुराने बहाने,
अब उनसे उठे हुए सब तहख़ाने भुला दो(2)

तेरी धड़कन के जो आए थे पुराने तराने,
मेरे सीने में छुपे उन अफ़साने भुला दो(2)

जो भी मौसम थे कभी दर्द के तीर चलाने,
उन हवाओं के सभी तीखे निशाने भुला दो(2)

अब जो पल-पल में तेरी याद जगाए फ़साने,
जीने के लिए वो टूटे तराने भुला दो(2)

जी आर के सभी दिल के अफ़साने भुला दो,
अब ग़ज़ल में भी तुम्हारे ही फ़साने भुला दो(2)

जी आर कवियुर 
25 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Tuesday, November 25, 2025

पसंद आती है,(ग़ज़ल)

पसंद आती है,(ग़ज़ल)

अब तेरी मीठी इश्क़ में तन्हाई पसंद आती है,
तेरी यादों की महक दिल को पसंद आती है(2)

रात की ख़ामोशियों में तेरी धड़कन सुनाई देती,
कुछ अजीब-सी ये तन्हाई भी अब रंग लाती है(2)

तेरे जाने के बाद भी तेरी आहट दिल को छू जाती है,
हर कदम पर तेरी चाहत मुझे छूती जाती है(2)

अंखियों में बसते सपने तेरी तस्वीर बना लेते,
फिर वही अश्कों की गरमी दिल को समझाती है(2)

इक मोहब्बत की रवानी है जो थमती ही नहीं,
तेरी राहों की ये खुशबू भी साथ निभाती है(2)

जी आर बरसों बाद भी दिल से मानता है,
पहली धड़कन याद आती है(2)

जी आर कवियुर 
25 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

ये सफ़र (ग़ज़ल)

ये सफ़र (ग़ज़ल)


ख़ामोशियों ने सँवारा यादों का ये सफ़र,
धड़कन ने धीमे-धीमे लिखा दिल का ये सफ़र(2)

रातों की रेत पर बिखरे पांवों के निशाँ,
चुपके से शाम ने ढोया ख़्वाबों का ये सफ़र(2)

तेरी हवा ने जहाँ-तहाँ रूह को छुआ,
महका सा छोड़ गई फिर जज़्बों का ये सफ़र(2)

दिल की कहानी कोई समझे भी तो कैसे,
खुद से छुपा के चला हूँ तन्हा-सा ये सफ़र(2)

तेरी सदा की रौ में बहती रही रगें मेरी,
सुनता रहा वही दिल, धड़कनों का ये सफ़र(2)

जी आर के क़दम यूँ ही राहों में मुश्किलों से,
कुछ हँसी, कुछ दर्द लिए कटता रहा ये सफ़र(2)

जी आर कवियुर 
25 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


राम राम भजे मन

राम राम भजे मन 

प्रभु के सेवा में तन-मन हो सदा प्रसन्न,
प्रेम नगर के वासी बन, मेरा मन डोले।
राम दून सदा जपे, शरण तुम्हारी ले,
सदा हो आभा तुम्हारी, जीवन में उजियारे(2)

राम राम भजे मन सदा, राम राम
भक्ति में लीन हो जाएँ हम, राम राम

सत्य पथ पर चलूँ, हर कष्ट से बचाऊँ,
भक्ति भाव में लीन रहूँ, जीवन को सजाऊँ।
संग तुम्हारा पा लूँ, दुःख न कोई छू पाए,
प्रभु के चरणों में मैं, सदा निवास करूँ(2)

राम राम भजे मन सदा, राम राम
भक्ति में लीन हो जाएँ हम, राम राम

भक्तों के संग गाऊँ, नाम तुम्हारा हरदम,
मन में प्रेम भर लूँ, जैसे पुष्पों का भ्रम।
सदा रहूँ तुम्हारे पास, जीवन हो धन्य मेरा,
प्रभु की भक्ति में डूबा, हर दिन हो प्यारा(2)

राम राम भजे मन सदा, राम राम
भक्ति में लीन हो जाएँ हम, राम राम

जी आर कवियुर 
25 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

तूही मेरी आरजू हो (ग़ज़ल)

तूही मेरी आरजू हो (ग़ज़ल)


तू ही मेरी आरजू हो
हर खुशी की वजह तू हो(2)

तेरी यादों में खोया मैं हूँ
हर साँस में मोहब्बत तू हो(2)

चाँदनी रातों में जब तन्हा मैं बैठूँ
हर ख्वाब में रोशनी तू हो(2)

दिल की गहराई में जब भी मैं जाऊँ
हर धड़कन में आवाज़ तू हो(2)

तेरे बिना ये सफ़र अधूरा लगता है
जी आर की दास्ताँ, हर सफ़र में तू हो(2)

जी आर कवियुर 
24 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Monday, November 24, 2025

“सात रहस्य और नियम”

“सात रहस्य और नियम”

तालों में बजते राग, समुद्र की लहरें गुनगुनाएँ,
अंधकार में खिलते प्रकाश, रहस्य चुपचाप राह दिखाएँ(2)

महाद्वीप अपनी कहानियाँ बुनते,
सितारे आँसुओं में गुनगुनाते।
इंद्रधनुष मुस्कुराए, रंग बिखेरते,
समय के पग में सपने जागते(2)

तालों में बजते राग, समुद्र की लहरें गुनगुनाएँ,
अंधकार में खिलते प्रकाश, रहस्य चुपचाप राह दिखाएँ।

मोती जैसे गिरते श्वास,
विचार यात्रा करें ज्ञान के मार्ग।
सत्य और न्याय रखे मार्गदर्शन,
सात नियम, जीवन में प्रकाश(2)

तालों में बजते राग, समुद्र की लहरें गुनगुनाएँ,
अंधकार में खिलते प्रकाश, रहस्य चुपचाप राह दिखाएँ।

एक बार पाया, जादू कभी नहीं छिपता,
सारा ब्रह्मांड एक ताल में, रहस्य जगाता।
तालों में बजते राग, समुद्र की लहरें गुनगुनाएँ,
अंधकार में खिलते प्रकाश, रहस्य चुपचाप राह दिखाएँ(2)

जी आर कवियुर 
24 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


दीवाना बन गया (ग़ज़ल)

दीवाना बन गया (ग़ज़ल)

तेरे इश्क़ में दीवाना बन गया
हर सांस तुझसे ही जुड़कर रह गया(2)
 
चाँदनी रातों में तेरा ही ख्याल आया
दिल की हर धड़कन में तू बस समा गया(2)

तेरी आँखों की गहराई में खो गया मैं
हर बहका लम्हा मुझे तुझसे जोड़ा गया(2)

सन्नाटों में भी तेरा ही सुर गूँजता है
मेरे ख्वाबों का हर रंग तुझसे भरा गया(2)

हवाओं में घुला तेरा ही नाम पाया
मेरे वीराने दिल में बस तू ही बसा गया(2)

मैं जी आर, तेरे नाम का दीवाना बन गया
तेरे इश्क़ की बारिश में सब कुछ बहा गया(2)

जी आर कवियुर 
24 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Sunday, November 23, 2025

चल रहा (ग़ज़ल)

चल रहा (ग़ज़ल)

तेरी राहों में खो गया मैं, सफ़र में तनहा चल रहा,
हर कदम पर तेरा नाम था, हर साँस में खुदा चल रहा(2)

चाँदनी में झिलमिलाती, रात मेरी रहबर चल रहा,
अंधेरों में भी दिखती, तेरी रोशनी चल रहा(2)

दिल की प्यास बुझाने को, पानी नहीं ये प्यार चल रहा,
तेरी यादों की धारा में, बस खुदा का अहसास चल रहा(2)

हवाओं से पूछता हूँ, रास्ता तेरी ओर कहाँ चल रहा?
हर मोड़ पर मिले अक्स तेरा, हर राह में पहचान चल रहा(2)

मुरझाए फूलों की तरह, मैं बिखर जाऊँ तेरी चाह चल रहा,
तेरे दरवाज़े की मिट्टी में, खो जाऊँ तेरी राह चल रहा(2)

जी आर ने लिखा ये सफ़र, मेरी रूह ने तुझको देखा चल रहा,
तेरे इश्क़ की ज्वाला में, मैं हर सांस में जिया चल रहा(2)


जी आर कवियुर 
23 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


Saturday, November 22, 2025

आग और मत बढ़ा, (ग़ज़ल)

आग और मत बढ़ा, (ग़ज़ल)

आग और मत बढ़ा, दिल तो पहले ही जल रहा,
धुआँ‑धुआँ सा हूँ मैं, तन्हाई के आलम में ढल जा रहा(2)

तेरी यादों की चिंगारी, मेरे सीने में घर बनाती,
खामोशी की राख में, मेरी साँसें खोजती जा रही(2)

रात की नसों में एक‑एक कर शिकन उतरती,
यादों का धुआँ, आँखों के रास्ते बहता जा रहा(2)

चाँदनी भी आज कुछ छुप-सी सी लगती है,
तेरी यादों की रोशनी में रात ढलता जा रहा(2)

हवाओं में तेरी खुशबू जैसे गुनगुनाती है,
हर कोने में तेरा एहसास बहता जा रहा(2)

सन्नाटों में तेरी हँसी गूंजती है,
दिल की गली में तेरी यादों का रास्ता चलता जा रहा(2)

जी आर ने लिखा, दिल से आवाज़ सुना जा रहा,
तेरी हर खुशी बसाई है यादों में बहता जा रहा(2)


जी आर कवियुर 
22 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


“बरसती रातों में” (नीला गीत)

“बरसती रातों में” (नीला गीत)


बरसती रातों में, दिल भीग रहा है
तेरी यादों के निशान मन में उतर रहे हैं
बादलों के बीच, मोहब्बत धीरे बह रही है
प्यार की छाया आँखों में खेल रही है(2)

गिरती बारिश की आवाज़ सुनाई देती है
बिन कहे हुआ दर्द धीरे घुल रहा है
दिल के कोने में एक ठंडक बिखरती है
दुख की कोमल लहरें मोहब्बत में फूट रही हैं(2)

अविश्वसनीय रात में, ढूँढ रहा हूँ चमकती रोशनी
तेरी यादें धुंध में तैर रही हैं
माला की तरह बरसती यादें भूलने की कोशिश में हैं
क्यों ये दुखभरी रात दिल को पूरी तरह भर देती है?(2)

जी आर कवियुर 
22 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

रात में (ग़ज़ल)

रात में (ग़ज़ल)

ख़्वाब बेबफ़ा हो चले रात में,
यादों ने वफ़ा कर दी उसी रात में(2)

चाँदनी ने छुपाई हर एक बात में,
दिल ने भी ख्वाबों को बाँधा साथ में(2)

तन्हाई ने छेड़ी जब गीत दिल के,
हर सुर में बस तेरी याद आई साथ में(2)

हवाओं में घुली तेरी खुशबू रही,
हर साँस में गूंजे तेरा अहसास साथ में(2)

सितारों ने भी पूछा तुझसे ख़ामोशी में,
क्यों लौट न सके तू फिर उस रात में(2)

सन्नाटों में तेरी हँसी गूंज उठी,
हर कोने में तेरी झलक रही साथ में(2)

अब तो बस यादें ही हैं मेरे दिल की राह में,
तेरी मोहब्बत बसी है हर बात में(2)

जी आर ने लिखा, दिल से आवाज़ आई,
तेरी हर ख़ुशी बसाई हे यादों में(2)

जी आर कवियुर 
22 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

तेरी नैनों की झलक से (ग़ज़ल)

तेरी नैनों की झलक से (ग़ज़ल)


तेरी नैनों की झलक से, मैं होश खो बैठा हूँ,
क्या कहूँ इतना कि जैसे जन्नत में जा बैठा हूँ(2)

रात की ठंडी हवा में तेरी खुशबू बसी मिलती है,
दिल के वीरान सफ़े पर अब इक रौशन लफ़्ज़ लिखा बैठा हूँ(2)

तेरी तन्हा सी हँसी ने दिल के अंदर दीप जला डाले,
सोच के हर मोड़ पे तेरे नाम का चिराग़ जला बैठा हूँ(2)

जब से तेरी राहों में मेरी मंज़िलें उतर आई हैं,
हर कदम तेरे क़दमों की आहट में ही ढल बैठा हूँ(2)

तेरी बातों में लिपटी मासूम सी खामोशी ने,
दिल के अंदर छुपे राज भी आज खुला बैठा हूँ(2)

कविता लिखते हैं जी आर दिल की धड़कनों की तर्ज़ पर,
तेरे इश्क़ की दस्तक सुनकर खुद ही ग़ज़ल बना बैठा हूँ(2)

जी आर कवियुर 
22 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

“ज़िन्दगी की सीख”(ग़ज़ल)

“ज़िन्दगी की सीख”(ग़ज़ल)

साँसों की गिनती में अब धीरज रखो
हर एक पल में थोड़ा मुस्कान रखो(2)

बीत गए दिन और बीते रंगों की बात
पर यादों में अभी भी उमंग रखो(2)

झुर्रियों में छुपा है जीवन का सार
हर लकीर में अनुभव और प्यार रखो(2)

चिंताओं की परतें धीरे-धीरे हटा दो
हर सुबह अपने दिल में नया विचार रखो(2)

वक़्त की गति को न रोक पाओगे तुम
बस हर कदम में संतोष और उभार रखो(2)

माना कि उम्र कुछ खोए-खोए दिन लाती
पर आँखों में सपनों का उजाला रखो(2)

उम्र के सफर में सीख ले ज़रा, जी आर
चिंताओं को छोड़, मुस्कान हृदय में रखे(2)


जी आर कवियुर 
22 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


अकेले विचार – 127

अकेले विचार – 127

कोई श्रेष्ठ नहीं, कोई नीचा नहीं
सब अपने ही प्रकाश में चमकते हैं

कोई नकल नहीं कर सकता, कोई रास्ता समान नहीं
हर किरण अपना रास्ता तय करती है

तुम तुम हो, मैं केवल मैं हूँ
ब्रह्मांड की अनंत गहराइयों में खड़ा हूँ

समानता नहीं, तुलना करने का तरीका नहीं
जीवन के सदियों में हम अद्वितीय रहते हैं

हर विचार, हर सपना, हर कहानी अलग है
इन्हें मिलाकर नया संसार बनता है

हम अपने लिए निर्णायक हैं
स्वभाव और अनुभव का एक अनोखा किनारा
सब अलग चमकते हैं, कभी एक जैसे नहीं


जी आर कवियुर 
22 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Friday, November 21, 2025

आखिर इस दर्द का दवा क्या है (ग़ज़ल)

आखिर इस दर्द का दवा क्या है  (ग़ज़ल)


आख़िर इस दिल के दर्द की दवा क्या है,
जो आँखें यूँ समुंदर-सी बहें—असर ये क्या है?(2)

रातें भी मेरी साँसों की थकन पूछती हैं,
चाँद की चुप्पी में छुपा कौन सा सफ़र ये क्या है?(2)

तेरी याद का बादल भी बरसता नहीं अब,
दिल की वीरानी में ठहरा हुआ शहर ये क्या है?(2)

राहों में तेरे क़दमों की गूँज जागती है,
सुनता हूँ जो ख़ामोशी में—ये असर ये क्या है?(2)

आँखों में तेरी परछाइयाँ क्यों लौट आती हैं,
बिखरा हुआ मुझमें फिर वही नज़र ये क्या है?(2)

जी आर को भी ये राज़ अभी तक समझ न आया,
दिल को तेरी महफ़िल से इतनी लगन क्यों है, क्या है?(2)

जी आर कवियुर 
19 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

हम किसके इंतजार में जीते हैं (ग़ज़ल)

हम किसके इंतजार में जीते हैं (ग़ज़ल)

हम किसके इंतज़ार में जीते हैं,
तेरे ही दीदार के ख़्वाब में जीते हैं(2)

चाँदनी रातों में तन्हाई का आलम,
तेरे नाम की खुशबू में जीते हैं(2)

सांसों में तेरी यादों की मिठास बसाए,
हर दर्द को तेरे प्यार में जीते हैं(2)

हवाओं से पूछते हैं तेरी कहानी,
तेरी हँसी की खनक में जीते हैं(2)

हर मोड़ पे ढूँढते हैं तेरा निशां,
तेरी तस्वीर के सामने जीते हैं(2)

जी आर तेरे ही नाम से सजता है ये दुनिया,
तेरे प्यार में ही हम अपनी जिंदगी जीते हैं(2)

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
20 11 2025

मौसम बदल गया (ग़ज़ल)

मौसम बदल गया (ग़ज़ल)


डगमगाए चाँद-सितारे, नींद का नशा चढ़ आया,
हज़ारों सपने ला कर तू, आँखों को जगा ही गया(2)

तेरी खुशबू रात की शाखों पर जब भी लहराई,
हर एक झोंका दिल की गलियों में तेरा नाम लिख गया(2)

ख़ामोशी में तेरे कदमों की आहट कुछ ऐसा बोली,
जैसे बरसों से सूखे दिल में कोई सावन उतर गया(2)

नज़र मिली तो फ़ासलों के सारे नक़्शा बदल गए,
मुझको लगा कि ये जहाँ भी तेरे ही साथ चल गया(2)

तेरे जाने के बाद भी कमरे में तेरी परछाईं,
हर पल मेरे हौंसले को टूट कर फिर से संवर गई(2)

जी आर के दिल की पतंग तेरी डोर में ही बँध गया,
तू मुस्कुराया बस इतना, साँसों का मौसम बदल गया(2)

जी आर कवियुर 
20 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

लहर उठा (ग़ज़ल)

लहर उठा (ग़ज़ल) 

तेरे मिलने के बाद लबों पे नूर उठा,
मेरे दिल में भी एक नया ख़्वाबों की लहर उठा(2)

तेरी यादों की बारिश ने वीराने में रंग उठा,
ख़ामोशियों में भी एक हलचल नया उठा(2)

तेरी हँसी की खनक ने टूटी दिल की दीवार को छू लिया,
मेरे जख्मों में भी फिर इक चिराग़ उठा(2)

तू जो पास आया तो मौसमों में बहार आई,
मेरी थकी साँसों में भी एक ग़म-ए-ख़ुशी उठा(2)

तेरे लफ़्ज़ों की मिठास ने चुप रहकर भी मुस्कान दी,
मेरे दिल की हर दीवार पे एक प्यार का सुकून उठा(2)

तेरी आँखों का जादू फिर से दिल में उतर आया,
मेरी रातों में भी एक चाँद सा उजाला उठा(2)

कविता लिखते हैं जी आर, हर लफ़्ज़ में असर उठा,
तेरे नाम के जादू से मेरी ग़ज़ल में लहर उठा(2)

जी आर कवियुर 
21 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तेरी मौजूदगी ( ग़ज़ल)

तेरी मौजूदगी ( ग़ज़ल)


अंधेरों में भी मैं ढूँढूँ तेरी मौजूदगी,
नींद के संग ही बसी रहे तेरी मौजूदगी(2)

बरसती चुप-चुप बारिश में मिली तुझे मैं,
हर बूंद में महकती रहे तेरी मौजूदगी(2)

रंगहीन राहों में तू आई अचानक,
हर खामोशी में झलके तेरी मौजूदगी(2)

ठंडी हवाओं में वो गर्माहट महसूस हुई,
हर स्पर्श में समाई रहे तेरी मौजूदगी(2)

आँखों में नमी न हो पर मुस्कुराए तू,
हर एहसास में बसी रहे तेरी मौजूदगी(2)

दिल थक कर भी थम नहीं पाया तेरे बिना,
हर धड़कन में गूँजती रहे तेरी मौजूदगी(2)

कविता लिखते हैं जी आर, दिल से,
हर लफ़्ज़ में जगे बस तेरी मौजूदगी(2)

जी आर कवियुर 
21 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Thursday, November 20, 2025

कविता: दर्दनाक पलों का कुल योग

 कविता: दर्दनाक पलों का कुल योग



प्रस्तावना


यह कविता कनाडा के टोरंटो में मिराबेला बिल्डिंग की बारहवीं मंज़िल से एक ठंडी और खामोश रात में देखे गए एक पल से पैदा हुई है।

आधी रात के आस-पास, बेडरूम की खिड़की के बाहर शहर का शांत नज़ारा अचानक तब बिखर गया जब नीचे सड़क पर एक एक्सीडेंट हुआ।


दूर से बजने वाले सायरन, चमकती इमरजेंसी लाइटें, और मुड़ी हुई मेटल को देखकर डर और दुख दोनों महसूस हुए।

नींद उड़ गई, और दिल पर एक बोझ सा महसूस हुआ जिसे शब्द उठाने की कोशिश कर रहे थे।


उस नाजुक पल में — अंधेरे और उम्मीद के बीच, सदमे और खामोशी के बीच — ये लाइनें निकलीं, जो रात की कांपती हुई शांति और उसके बाद हुई शांत प्रार्थना को दिखाती हैं।



कविता: दर्दनाक पलों का कुल योग


रात की ख़ामोशी टूटती गई,

रोशनी की लकीरें दिल को छूते ही,

सड़कों पर लोहा बिखरकर रोया।


खिड़की के बाहर कंपन उठते ही,

गहरी पीड़ा नीचे फैलती गई,

अँधेरा डर से भरता गया।


परछाइयाँ चारों ओर काँपती रहीं,

हवा में सिसकियाँ खोती गईं,

बिजली जैसी आँखें चमक उठीं।


नींद का पल दूर खिसकता गया,

सीने में भारी साँस उतर आई,

दुआ बनकर उम्मीद उभर आई।


जी आर कवियुर 

 23 11 2025/ 12:00 रात्रि

(कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, November 19, 2025

खुदाको ढूंढो खुद में (सूफी ग़ज़ल)

खुदाको ढूंढो खुद में (सूफी ग़ज़ल)

खुदा को ढूँढ ले तू खुद में,
खुशियों की राह मिले खुद में(2)

मन की अगन जगे जब भीतर,
ज्योति का दीप जले खुद में(2)

पथ के काँटे हों जितने भी,
सहन का बल मिलता खुद में(2)

भीड़ के शोर में खो मत जाना,
सच्चा स्वर सुनता खुद में(2)

बाहरी राहों में मत भटके,
सत्य का स्वर मिलता खुद में(2)

जप–तप, मंदिर, तीर्थों से बढ़कर,
प्रेम का सागर बहता खुद में(2)

मन की गाँठें जब खुल जातीं,
शांति का पल खिलता खुद में(2)

जी आर कहता— प्रभु बाहर क्या,
सारा जग छिपा है खुद में(2)

जी आर कवियुर 
19 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, November 18, 2025

रुके वक़्त का बह जाना” (ग़ज़ल)

रुके वक़्त का बह जाना” (ग़ज़ल)

किसी बहाने बना के तुम यूँ ही चले आना,
मिरी नज़र में छलकता है अब भी वही फ़साना(2)

हवा में आज भी महकते हैं तेरे क़दमों के निशाँ,
उसी गली में मेरा दिल रख गया अपना ठिकाना(2)

तुम्हारे बाद भी ये शामें वैसी ही उतरती हैं,
चिराग़-ए-याद से जारी है रात का जगमगाना(2)

अजब ये दर्द है जो तुमसे होकर ही सँवरता है,
तुम्हीं से बंधा है मेरी रूह का हर तराना(2)

ज़रा-सी बात पे आँखें भिगोती है तन्हाई,
कोई सदा सी उठती है—तुम्हें फिर से बुलाना(2)

जी आर के दिल में अब भी तुम्हारा ही एक घर है,
तुम आना कभी—कि रुके वक़्त का बह जाना(2)


जी आर कवियुर 
18 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“कहीं यादों में कहीं”

“कहीं यादों में कहीं”

कहीं जन्मों की यादों में कहीं
कहीं बिखरी हुई बातें कहीं
लिखे बिना बीते हर लम्हें
बस यादों में ही रह गए कहीं

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

एकांत की नर्मी में छुपा
खामोशी में एक आवाज़ ढूँढी
हाज़िरी दिल में भर गई
मधुर स्मृति जैसी कोई गूँज उठी

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

हवाओं की छुअन में खो गया
दिल थमते ही प्रेम जागा
सजीव आँसुओं में समाया
भूल की परछाई जैसे गायब हो गई

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

समय की लहरों और व्यस्तता में थक गया
भूले हुए लम्हों की तलाश में आया
मन में बँधी हुई सोचें खुलीं
सपने जैसी छवि फिर नजर आई

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

नई बारिश में यादों की ठंडक
अप्रत्याशित गहराइयों में परछाई
पुरानी खुशबुएँ रास्तों में फैलीं
एकात्म यात्रा में फिर चमक उठी

कहीं यादों में कहीं, दिल खो जाता है
कहीं यादों में कहीं, संगीत बह जाता है

जी आर कवियुर 
18 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

सागर मेरा है

सागर मेरा है

सागर मेरा है, फिर भी तेरी लहरों तक ही पहुँचना है,
जहाँ भी जाऊँ, जीवन की धाराएँ आगे बढ़ती रहती हैं,
न तो तूफ़ान, न खतरे इसे रोक सकते हैं,

सात सौ योजनाओं की हवा भले ही भरे, किनारा न पाएगी तेरा,
समय कितना भी बीत जाए, तेरी धड़कन की तीव्रता मंद न होगी,
दुनिया भले भुला दे, सिर्फ़ तेरी आवाज़ ही सुनाई देगी,
अक्षरहीन तकदीर की पंक्तियों में, तेरा साया चमकता रहेगा,

अडिग सांध्य में नया भोर धीरे-धीरे खिलता है,
मौन की लय मेरी छाती में लहरें बनाती है,
मृदु यादों की खुशबू मेरी सांसों में बहती है,
कठिन राहों में आशा का दीपक नया उजाला दिखाता है,

उठती हवा का दिल राग को मन तक पहुँचाता है,
जलते तारे भी कभी न बुझने वाले सपनों की रक्षा करते हैं,
शांत तट पर आत्मा विश्राम करती है,
हर रात साहस उठता है, नए रास्ते बनाने को,

सागर मेरा है, फिर भी तेरी लहरों तक ही पहुँचना है,
जहाँ भी जाऊँ, जीवन की धाराएँ आगे बढ़ती रहती हैं,
न तो तूफ़ान, न खतरे इसे रोक सकते हैं।

जी आर कवियुर 
18 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, November 17, 2025

अब भी सताती है (ग़ज़ल)

अब भी सताती है (ग़ज़ल)

बीते हुए बचपन की महक अब भी सताती है,
खोए हुए लम्हों की सूरत दिल को रुलाती है(2)

सपनों में आने वाली तस्वीरें भी सहम जाती,
आँखें जो खुलें तो हक़ीक़त दूरी दिखाती है(2)

राहों में बिखरे पलों की ख़ुशबू भी कम न हुई,
दामन से छूटे रिश्तों की चुप्पी तड़पाती है(2)

काग़ज़ की कश्ती, बारिश की बूंदें सब याद हैं,
मौसम का हर झोंका दिल को वहीं ले जाती है(2)

साए की तरह साथ चले थे जो बचपन में,
वक़्त का मेला हर रिश्ते को बहाती है(2)

जी आर, दिल में बचपन की खुशबू अब भी खिलती है,
वरना यादों की ये लहर क्यों यूँ दिल को बहाती है(2)

जी आर कवियुर 
17 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

दिल की परीक्षाई( ग़ज़ल )

दिल की परीक्षाई( ग़ज़ल )

दिल की परीक्षाई में बस तेरी सूरत आई है
भूलने की कोशिश भी दिल को और सताई है (2)

हर एक साँस में तेरी खुशबू महक रही है
तेरी यादों का असर अब तक मेरे साथ आई है(2)

चाँदनी रात में तेरा चेहरा नज़र आता है
तेरी यादों की लौ दिल में जलती जाती है(2)

कोशिशें मेरी अब तुझसे दूर जाने की
पर तेरी मोहब्बत ने सब राहें रुकवाई है(2)

तन्हाई में तेरी हँसी गूँजती है आज भी
तेरी हर बात अब भी दिल के कानों में समाई है(2)

जी आर के हर खुशी में वह ही समाया है
उसके बिना जीवन अधूरा सा लगता है(2)

जी आर कवियुर 
15 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

चमेली हो तुम (ग़ज़ल)

चमेली हो तुम (ग़ज़ल)

प्यार की गलियों में महकता चमेली हो तुम
दिल की बगिया में हर खिला चमन हो तुम

चाँदनी रात में तेरी छवि तैरती है समंदर की लहरों पर
किनारे की रेत पर तेरी यादों का पैगाम हो तुम

तितली जैसे नाज़ुक, कोयल की मीठी तान में बसी
हर पेड़-पौधे की हरी छाँव में मुस्कान हो तुम

मोर की पूँख फैलती जब हवाओं में नाचती है
मेरी तन्हाई में तेरी खुशबू की पहचान हो तुम

पर्वत की चोटियों पर खिलते सूरज की किरणों में
हर सुबह मेरे दिल की सुबह का अरमान हो तुम

जी आर के हर खुशी में वह ही समाया है
उसके बिना जीवन अधूरा सा लगता है

जी आर कवियुर 
15 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

न समझा (ग़ज़ल)

न समझा (ग़ज़ल)

दिल को समझने से भी, न समझा
तेरी यादें सताती रहीं, पर न समझा(2)

रात की तन्हाई में, जब तेरी याद आई
हर ख्वाब में तेरी परछाई, न समझा(2)

चुपके से तेरी ख़ुशबू, छू गई साँसों में
पर दिल ने उस एहसास को, न समझा(2)

सन्नाटे में गूंजती हैं, तेरी बातें
पर मेरे कानों ने इनको, न समझा(2)

इश्क़ की आग में, जलते रहे हम दोनों
पर अपने जज़्बात को, न समझा(2)

तुम्हारी हँसी में, छुपा था जो राज़
उस हँसी को दिल ने, न समझा(2)

अब जो भी कहूँ मैं, अपनी तन्हाई में
जी आर के सिवा, इसे न समझा(2)

जी आर कवियुर 
15 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अकेले विचार – 126

अकेले विचार – 126

“आत्मविश्वास की लौ”

सुबह की किरण आज मन को जगाती है,
विचारों की राह पर आशा पनप जाती है,
नए कदम एक नया सफर बनाते हैं,
साहस का स्पर्श धड़कनों को मजबूत बनाते हैं।

दृश्य बदलते ही मौके चमकने लगते हैं,
मुस्कान से दिन भी मधुर होने लगते हैं,
विचारों की शक्ति राह को सरल बनाती है,
जब योजनाएँ मिलें तो सफलता खिल जाती है।

जो लक्ष्य चमकता है, वह आगे बुलाता है,
दृढ़ निर्णय मन में अडिग रह जाता है,
सपने पंखों जैसे ऊँचाई छू जाते हैं,
आत्मविश्वास जीवन हर पल जगमगाता है।

जी आर कवियुर 
17 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Saturday, November 15, 2025

दिल्ल में समाई है (ग़ज़ल)

दिल्ल में समाई है (ग़ज़ल)


दिल में समाई है तन्हाई की परछाई है
रात भी जलती है, दिन भी उसी की परछाई है(2)

तेरी मोहब्बत ने हर साँस को रंगाई है
दर्द की गहराई में भी तेरी ही आहट समाई है(2)

रूह के आईने में तेरी हवा कुछ कहती है
ख़्वाब की गलियों में तेरी ही किरन जगाई है(2)

दिल की उजड़ी राहों पर तेरी सदा ठहरती है
वक्त की रेतों में भी एक याद कहीं छुपाई है(2)

तेरी क़रीबी का जादू आज भी दिल पर है
मेरी हर धड़कन ने तेरा नाम ही अपनाई है(2)

जी आर को मोहब्बत की पहचानी रुसवाई है
वो भी क्या करे—उसके दिल में तेरी ही परछाई है(2)

जी आर कवियुर 
15 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

हृदय वेदी

हृदय वेदी

हृदय वेदी
मौन में उजाला चमकता है।

यादें धीरे-धीरे गिरती हैं,
दुःख और सुख साथ खेलते हैं।

प्रेम की अग्नि में हृदय जलता है,
साये स्नेह की गोद में विश्राम करते हैं।

मधुर कोमलता पलों में बरसती है,
दुःख और आनंद साथ गाते हैं।

विचार आँसुओं में छिपते हैं,
सपने प्रकाश में उभरते हैं।

हृदय वेदी पर आत्मा शांत होती है,
समय की लय अनुनाद करती है,
सत्य और प्रेम के लिए मार्ग बनाती है।

जी आर कवियुर 
15 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

सागर की लहरें

सागर की लहरें

सागर की लहरें
लहरें किनारे को चूमते हुए फैलती हैं।

हवा में बहता पानी आँखों में गीत गाता है,
मौन मुस्कुराते बादलों को छूता है।

स्मृतियों की लहरें घूमती हैं जैसे झूला,
हृदय में शांति की तलाश करती उपस्थिति।

साये चांदी की बारिश में बहते हैं,
सागर की गर्जना आत्मा में गूँजती है।

भ्रम लहरों में छिप जाते हैं,
तारे नीले आकाश में आईने की तरह गाते हैं।

जहाँ तुम नहीं हो, वहाँ गति छाँव बन जाती है,
सागर की लहरें जीवन की कहानी सुनाती हैं।

जी आर कवियुर 
15 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


शब्द कट रहे हैं,

शब्द कट रहे हैं,

शब्द कट रहे हैं,
निर्वाणी दिल को छूती है।

विचार राहें खोजते हैं,
हवा की लय मन को बहा ले जाती है।

नज़रे बारिश की तरह गिरती हैं,
आँखों में कहानियाँ फैलती हैं।

दूरी अचानक उठती है,
स्मृतियाँ चमकती हैं, बीच में खड़ी।

क्षण सपनों को जोड़ते हैं,
दिल एक छुपा हुआ गीत गाता है।

साये शाम में मिल जाते हैं,
बेबसी लाल बादलों में रास्ता बनाती है।


जी आर कवियुर 
15 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


Friday, November 14, 2025

अकेले विचार – 125

अकेले विचार – 125

“मुस्कानों की सुनहरी रौशनी”

मुस्कान भर दे हर दिल में गर्माहट
दिन जगमग हों नर्म उजाले से
नजरें खिल उठें उम्मीद के सपनों से
गलियाँ गूंजें मीठी हंसी से

नयन बरसाएँ शीतल दया
कदम बढ़ें नेक राहों पर
हाथ थामें स्नेह की छाया
शब्द दें सच्चे विश्वास की शक्ति

चेहरे खिलें कोमल सुंदरता से
बादल छँटें नीला आकाश लिए
यादें गढ़ें प्रेम की डोर
जीवन बहे मधुर गीत बनकर


जी आर कवियुर 
14 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

अकेले विचार – 124

अकेले विचार – 124

संतोष हृदय को पूरा भर देता है,
शांत मन में सुख की बयार बहती है।

स्नेह फैलता है और करुणा चमकती है,
मन में विनम्रता पनपती है।

स्वास्थ्य सच्ची राहत का परिचय है,
जीवन खुशियों से जगमगाता है।

कष्टों को पार कर शांति मिलती है,
बुद्धिमानी रास्ता दिखाती है।

सत्य जीवन को समृद्ध बनाता है,
निर्धनों के प्रति प्रेम महिमा बनता है।

अहंकार घटता है, करुणा बढ़ती है,
मित्रता हृदय में मुस्कुराती है।

जीवन के मार्ग स्पष्ट और उज्ज्वल हो जाते हैं,
संतोषी आत्मा का संसार सुखमय है।

जी आर कवियुर 
13 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

ग़ज़ल — “मुस्कानों की रवानी है”

ग़ज़ल — “मुस्कानों की रवानी है”

हर लम्हा तेरी हंसी में एक दिलकश कहानी है,
सच कहूँ तो मुस्कुराहट ही ज़िंदगी की रवानी है(2)

नज़र में जो चमक उतरी, वो ख्वाबों की निशानी है,
राहों पर गूँजती खुशबू भी तेरी मेहरबानी है(2)

नर्म दिलों को छू ले जो, वो जज़्बात की पानी है,
लफ़्ज़ों में जो भरो सच्चाई, वही असली ज़िम्मेदारी है(2)

चेहरों पर खिलते जज़्बे में मोहब्बत की रवानी है,
बादल हटते ही नीला सा एक खुला आसमानी है(2)

यादों में जो मीठे पल हैं, हर एक एक निशानी है,
ज़िंदगी यूँ गुनगुनाती है— मानो कोई पुरानी कहानी है(2)

कहते हैं “जी आर” कि मुस्कान ही मेरी पहचान रही,
जिस दिल में खुशियाँ बोईं, वहीं मेरी दास्तान रही है(2)

जी आर कवियुर 
14 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Thursday, November 13, 2025

“समय बहता है”(भाव गीत)

“समय बहता है”(भाव गीत)

समय बहता है, दिल में यादें जागती हैं
दूर की नजरें, प्यार की धड़कन बढ़ाती हैं (2)

धुंधली धूप में ठंडक समाती है
सन्नाटा भरे लम्हों में दिल जागता है
पत्ते गिरते हवाओं में सपने खो जाते
गर्मियों की हंसी में प्यार कहीं खो जाता(2)

समय बहता है, दिल में यादें जागती हैं
दूर की नजरें, प्यार की धड़कन बढ़ाती हैं

पतझड़ की गर्मी से राहों में दर्द बहता
गिरी हुई बूंदों में दूरियों के ख्वाब पलते
हिम बारिश की रात में आंखें भीग जाती
गायब हो गए प्यार की यादें घाव छोड़ जाती(2)

समय बहता है, दिल में यादें जागती हैं
दूर की नजरें, प्यार की धड़कन बढ़ाती हैं

दूर लम्हों की यादें दिल में ठहर जाती
एकाकीपन बहता है, आंसुओं में डूब जाता
मौन लय में शामें धीरे-धीरे बिखरती
दूर की नजरें दिल की धड़कन बढ़ाती(2)

समय बहता है, दिल में यादें जागती हैं
दूर की नजरें, प्यार की धड़कन बढ़ाती हैं

दिल की ताल में यादें उठती हैं
रंगहीन रातों में खेत भी गुनगुनाते हैं
भूल के आंसू में प्यार का बसेरा
एकाकीपन में विरह का गीत खिलता है(2)

समय बहता है, दिल में यादें जागती हैं
दूर की नजरें, प्यार की धड़कन बढ़ाती हैं


जी आर कवियुर 
13 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

सोचा नहीं (ग़ज़ल)

सोचा नहीं (ग़ज़ल)


सपना देखा और जागा, पर सोचा नहीं,
सुंदर मुख था वो, पर जाना नहीं(2)

सुरलोक हो या परलोक, देखा या नहीं,
सुरों की राह में तुम बदलोगी, सोचा नहीं(2)

चाहे लिखा या गाया कितना भी, खत्म नहीं होगा,
ऐसा तुम एक ग़ज़ल बनोगी, सोचा नहीं(2)

अब देखूंगा या नहीं, कुछ पता नहीं,
इस लोक या परलोक में तुम हो या नहीं, सोचा नहीं(2)

हवा की तरह जब तुम मुस्कुराई,
दिल की यादें मिट जाएंगी, सोचा नहीं(2)

हर पल तुम्हारा साथ ढूँढते हुए,
मन का शून्य गीत में लौट जाएगा, सोचा नहीं(2)

जी आर की कलम से नीली पीड़ा गाई जाती है,
इस ग़ज़ल के हर सुर में दिल गूँजता है, सोचा नहीं(2)

जी आर कवियुर 
13 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Wednesday, November 12, 2025

क़लम और यादें (ग़ज़ल)

क़लम और यादें (ग़ज़ल)

काग़ज़ और क़लम से दफ़्न कर दिया हमने,
बीते हुए प्यार की यादें मिटा दीं हमने(2)

हर लफ़्ज़ में तेरी खुशबू अब भी बसी है,
साँसों से मगर वो रूहें जुदा कर दीं हमने(2)

चाँद की तरह तू दूर सही, रौशनी तो दी,
दिल की हर एक अँधियारी सजा दी हमने(2)

तेरे ख़तों की स्याही में अब भी नमी है,
वक़्त की लहरों में सब बहा दीं हमने(2)

आँखों के समंदर में तस्वीर तेरी अब भी है,
मगर उन लहरों से नज़रें चुरा लीं हमने(2)

दिल के हर कोने में तेरी आहट बाकी थी,
ख़ामोश दुआओं से उसे सजा दी हमने(2)

जी आर के क़लम से निकला जो दर्द था,
उसे भी ग़ज़ल बनाकर सजा दी हमने(2)

जी आर कवियुर 
12 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

“मौन का संगीत”


“मौन का संगीत”

सबेरे में मौन धीरे से बुलाता है
फूलों की खुशबू हवा में नाचती है
नदी के पानी में चुप्पी का संगीत बहता है
पक्षियों के गीत दिल को आनंद से भरते हैं

चांदनी शांत स्थानों में चमकती है
गर्मी की सुंदरता कोमल भाव जगाती है
आसमान में बादल नृत्य करते हैं
छोटी बूंदें जीवन में खेल बिखेरती हैं

छायादार वृक्ष चारों ओर शांति फैलाते हैं
नई राहों में यादें चमकती हैं
पंख वाले पल मीठे सपनों की ओर उड़ते हैं
मौन बोलता है, दिल मधुर गीत गाता है


जी आर कवियुर 
12 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

मैं कौन हूँ,

मैं कौन हूँ,

मैं कौन हूँ, पूछते हुए आँसू बहते हैं
भावनाओं के संग मन खोज में रहता है
रंगहीन राहों में मैं अकेला चलता हूँ
स्मृतियों की बारिश में विचार बह जाते हैं

पंखों के बिना, मैं हवा में उड़ता हूँ
निर्मल खामोशी में ध्वनि की खोज करता हूँ
प्रेम, दर्द और आनंद सब अनुभव करता हूँ
समय की विशालता में कदमों की गूँज है

छिपे हुए पल नरम आँसुओं में मिलते हैं
जहाँ पंख प्रकट होते हैं, वहां प्रकाश गिरता है
नई राहों में जिज्ञासा गीत गाती है
मैं कौन हूँ पूछते हुए मिठास फूटती है

जी आर कवियुर 
12 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

“मधुर यात्रा”

“मधुर यात्रा”

सबेरे की मिठास हवा में फैल रही है
फूल गा रहे हैं संध्या के पेड़ों संग
छायादार वृक्ष प्यार से जीवित हैं
नदी के पानी में सपनों की तरंग है

धीरे बहती नदी धीरे से बताती है
पक्षियों के गीत दिल को छू जाते हैं
बादल धूप में नृत्य कर रहे हैं
छोटी बूंदें जीवन में खेल बिखेरती हैं

गर्मी की खुशबू चारों ओर फैल रही है
नई राहों में यादें नाच रही हैं
पंखों वाले क्षण सपनों की ओर उड़ते हैं
यात्री का दिल मधुरता में गीत गाता है

जी आर कवियुर 
12 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

कवि का दिन (भाव गीत)

कवि का दिन (भाव गीत)

भोर में चिड़ियों का गीत गूंजता,
नई पंक्तियाँ हृदय में जगमगाती(2)

चाय का कप हाथ में, विचार बहते,
हल्की हवा में मिठास फैलती, आत्मा चमकती(2)

किताबें खुलतीं, पुरानी कविताएँ याद आतीं,
सफर की राहों में दृश्य खिलते(2)

संध्या की चाय, मित्रों की हँसी,
तारों की रोशनी पन्नों पर गिरती(2)

कविता आती है, मुस्कान बिखेरती,
अगर अनदेखी हो, तो अलग चेहरे के साथ चली जाती(2)

बाहर हवा में श्लोक गूँजते,
जीवन के छोटे-छोटे पल गीत बन जाते(2)

हर विचार कविता में फूल बनकर खिलता,
कविता की लय, मन की खिड़की पर दस्तक देती(2)

जी आर कवियुर 
12 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

तेरे नाम से(ग़ज़ल)

तेरे नाम से(ग़ज़ल)

दिल में सदा सी उठी लहर तेरे नाम से,
महकी ज़मीन और आसमान तेरे नाम से(2)

हर सांस में बसा है असर तेरे नाम का,
खिलता है मेरा ये समां तेरे नाम से(2)

रात की चांदनी भी गुनगुनाई तेरे लिए,
सपनों में बहका ये जहाँ तेरे नाम से(2)

नज़रों में तू ही तू है सदा प्यार की तरह,
रोशन हुई मेरी ज़ुबां तेरे नाम से(2)

ख़ामोशियाँ भी बोल उठीं जब याद आई,
महका हुआ मेरा जहाँ तेरे नाम से(2)

जी आर के दिल में है वही एक दास्ताँ,
ज़िंदा है उसका ग़ुलाम तेरे नाम से(2)

जी आर कवियुर 
11 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

गुलाम हूँ ग़ज़लो का (ग़ज़ल)

गुलाम हूँ ग़ज़लो का (ग़ज़ल)

गुलाम हूँ ग़ज़लो का, क्या बताए
हर धड़कन में तू ही बसे, क्या बताए (2)

साँसों में घुली तेरी खुशबू, क्या बताए
हर पल दिल में तेरा नूर, क्या बताए(2)

रात की चुप्प में तेरी तस्वीर है, क्या बताए
चाँदनी में छुपा तेरा असर, क्या बताए(2)

ख़्वाबों की गलियों में तू मुस्काए, क्या बताए
हक़ीक़त में भी तू ही समाए, क्या बताए(2)

तेरी यादों का आलम न पूछो, क्या बताए
हर लफ़्ज़ में तू ही क्यों आए, क्या बताए(2)

जी आर की मोहब्बत के चर्चे निराले
हर लफ़्ज़ में तू ही समाए, क्या बताए(2)

जी आर कवियुर 
11 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Tuesday, November 11, 2025

तू ही थीं (ग़ज़ल)

तू ही थीं (ग़ज़ल)

कुछ निगाहें तुम्हारी नटखट थीं
दिल को गहराई तक छू जाती थीं(2)

तेरी हँसी की वो मधुर बात थी
हर दर्द की रात भी हल्की हो जाती थीं(2)

जब तुम पास होते, दिल बहक थी
हर ख्वाब तुझसे ही महकती थीं(2)

तेरी मुस्कान ने चुरा लिया चैन मेरा थी
हर साँस में तेरा नशा हो जाती थीं(2)

इन आँखों में तैरते रहस्य अनकहे थीं
तेरी यादों के सागर में खो जाती थीं(2)

तेरे जाने से भी कोई शिकवा न थी
तेरी हर बात बस दिल में समा जाती थीं(2)

दिल के हर कोने में बसते रहे तुम थीं
जी आर की यादों में ग़ज़ल बस तू ही थीं(2)

जी आर कवियुर 
10 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

अकेले विचार – 123

अकेले विचार – 123

फिर बनो वही

जब बादल महलों की तरह आसमान में थे,
और हँसी बिना कारण नृत्य करती थी।
सुबहें चमकीली, खेलों से भरी,
और सपने दौड़ते थे दिन के उजाले में।

छोटे तालाबों में गूंजते गीतों की तरह,
और अनजाने मुस्कानों की मिठास।
सितारे दोस्त बनकर धीरे चमके,
और हर पल सपना बनकर बिखरा।

अब आँखें बंद करो, चिंता दूर हो जाए,
सुख अनुभव करो जैसे बारिश के बाद सूरज।
भीतर का बच्चा जानता है ये राग,
फिर बनो वही, मुक्त और खुशहाल।

जी आर कवियुर 
10 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

अभी भी,(ग़ज़ल)

अभी भी,(ग़ज़ल)

अजनबी बनकर भी जिऊँगा अभी भी,
आज भी, कल भी तेरे लिए जिऊँगा अभी भी(2)

बर्फ़ गिरती रही, यादें पिघलती रहीं,
हर क़तरा तेरे नाम से महकता रहा अभी भी(2)

ख़ामोश लम्हों में तेरी सदा सुनता हूँ,
दिल के हर कोने में तू बसता रहा अभी भी(2)

रात की चादर में तेरा चेहरा उतर आया,
चाँद की रौशनी में दिल जलता रहा अभी भी(2)

तेरे जाने के बाद भी महफ़िल सजी रहती है,
तेरा नाम लिए कोई मुस्कुराता रहा अभी भी(2)

ख़्वाब टूटे मगर नींदें रूठी नहीं अब तक,
तेरे ख्यालों का मौसम बरसता रहा अभी भी(2)

जी आर की ग़ज़ल में है तेरी खुशबू का असर,
हर शेर में तेरा ही जादू बोलता रहा अभी भी(2)

जी आर कवियुर 
10 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Sunday, November 9, 2025

“फूलों का मौसम”

“फूलों का मौसम”

सुबह की रोशनी में खिले फूल,
ओस की मिठास हवा में बिखरी।
संध्याकाल के सुनहरे रंग में,
आकाश चमके कोमल प्रकाश से।

पक्षी गाते हैं हृदय की गहराई से,
नदी की धारा में खिलती दिन की हँसी।
फूलों के स्पर्श से जीव जागता है,
रंग बुनते हैं सपनों की सुंदरता।

इंद्रधनुष के रंगों पर नाचते तितलियाँ,
रेत के तट पर चाँदनी की राह।
दुनिया के छुपे सौंदर्य में,
वसंत गाता है आनंद से, सुंदर और निर्मल।

जी आर कवियुर 
10 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“सपनों वाली आँखें”

“सपनों वाली आँखें”

चाँदनी में मुस्कान कोमल चमके,
आँखों में नृत्य करे आशा की लहर।
ओस की बूँदों जैसी मधुर धुन,
हृदय की धड़कनों में गाए संगीत।

हवा की लय में गूँजता मौन,
स्मृतियाँ छूतीं पंखों की तरह।
भोर की रौशनी में उजली आवाज़,
रंगों में खिल उठे जादुई आश्चर्य।

मन की राहों पर नृत्य करे लय,
आकाश चूमे सांझ का संगीत।
एक ही दृष्टि में छुपा सपनों का सागर,
सपनों वाली आँखें खिलें हृदय के तट पर। 

जी आर कवियुर 
10 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

प्यार का वन”

 “प्यार का वन”

नज़रों में खिला है एक सपनों का वन,
दिल की धड़कनों में है निर्मल स्पंदन।
हवा की सांसों में घुली है मिठास,
शांति में जागे अनंत उल्लास।

पंछी गाते प्रभात की तान,
ओस मुस्काए जैसे अरमान।
फूल खिले भोर की लय पर,
रंग बुनें सपनों का पथ सुंदर।

मन में बहती कोमल तरंग,
आकाश खड़ा है बाहें फैलाए।
एक वृक्ष सच्चाई में स्थिर,
प्यार का वन सदा जीवन दे जाए।

जी आर कवियुर 
10 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)



हर पल तेरी याद (ग़ज़ल)

हर पल तेरी याद (ग़ज़ल)

बेकरारी इतना हो गई तेरी याद में
दिल बहकता रहता है हर पल तेरी याद में(2)

चाँदनी भी अब अधूरी लगती है तेरी याद में
सितारों की रोशनी भी फीकी लगती है तेरी याद में(2)

हर साँस में तेरा नाम बसता है तेरी याद में
हर धड़कन की आवाज़ गूंजती है तेरी याद में(2)

बिछड़ के भी तू पास लगता है तेरी याद में
खामोशियों में तेरी हँसी सुनाई देती है तेरी याद में(2)

रात की तन्हाई भी अब प्यारी लगती है तेरी याद में
हर ख्वाब में तू सामने आता है तेरी याद में(2)

देखते देखते हर आहट पर उसकी आने की खबर,
जी आर खो गया है बेहत उसकी याद में (2)

जी आर कवियुर 
09 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

पहली बर्फ़बारी

पहली बर्फ़बारी

आसमान सजा सफ़ेद, सपने हुए जीवित,
मौन बन गया संगीत, जगमगाया हरचित(2)

आसमान सजा सफ़ेद, सपने हुए जीवित,
मौन बन गया संगीत, जगमगाया हरचित.
ठंडी हवाओं का हल्का स्पर्श,
चाँदनी में मेपल की पत्तियाँ करती नृत्य सर्श.(2)

आसमान सजा सफ़ेद, सपने हुए जीवित,
मौन बन गया संगीत, जगमगाया हरचित।

सड़कें मुस्काईं, मोती जैसी नरम,
पेड़ छिपे हल्के चादरों में, उजली चमक तमाम.
छोटे कदमों की परछाई,
सपने हवा में तैरें, बिना कोई आह्वान.(2)


आसमान सजा सफ़ेद, सपने हुए जीवित,
मौन बन गया संगीत, जगमगाया हरचित।

आँखों में आश्चर्य, दिल में उजाला,
खुशी के पल भरें असीम सवेरा.
नरम बर्फ़ में जागा आत्मा आज़ाद,
ज़िंदगी लगती एक नई कविता का इज़हार.(2)

आसमान सजा सफ़ेद, सपने हुए जीवित,
मौन बन गया संगीत, जगमगाया हरचित।

जी आर कवियुर 
08 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

यादें बरसती हैं

यादें बरसती हैं 

यादें बरसती हैं समय के साथ,
तुम मेरे हृदय के पायदान पर बसे हो। (2)

यादें बरसती हैं समय के साथ,
चाँदनी की मृदुल छाया में तुम्हें खोजते हुए,
नई राहों पर चलते हुए,
पुरानी यादें छाया की तरह उतरती हैं। (2)

यादें बरसती हैं समय के साथ,
तुम मेरे हृदय के पायदान पर बसे हो।

बारिश में जहाँ छोटी मुस्कानें बिखरती हैं,
आँखों में आँसू भरते हैं,
आशा की एक मधुर किरण,
अवश्यंभावी बारिश में एक छाया। (2)

यादें बरसती हैं समय के साथ,
तुम मेरे हृदय के पायदान पर बसे हो।

पुराने गीत बिना मुरझाए गाए जाएंगे,
समय बीतेगा, यादें फूलों की तरह खिलेंगी।
निशब्द हृदय सपनों को तैयार करता है,
यादें बरसती हैं समय के साथ — हमेशा हमारे साथ। (2)

यादें बरसती हैं समय के साथ,
तुम मेरे हृदय के पायदान पर बसे हो। 

जी आर कवियुर 
08 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

भारत, भारत

भारत, भारत 

भारत, भारत, मेरी मातृभूमि,
भलाई के पथ पर फैली हुई ज्योति। (2)

नदियाँ गाती हैं मधुर गीत,
पहाड़ संजोते हैं अपनी महिमा।
भोर के रंगों में आशा जगती है,
नई पीढ़ी में वीरता खिलती है। (2)

भारत, भारत, मेरी मातृभूमि,
भलाई के पथ पर फैली हुई ज्योति।

किसान और सैनिक साथ खड़े हैं,
एक धरती जहाँ साहस कभी नहीं ढलता।
सत्य और धर्म यहाँ कायम हैं,
प्रेम के कदम फैलते हैं पूरे देश में। (2)

भारत, भारत, मेरी मातृभूमि,
भलाई के पथ पर फैली हुई ज्योति।

विविधता में एकता का दीप जलता है,
विजय की गाथा, जिसे भरत ने संवारा। (2)

भारत, भारत, मेरी मातृभूमि,
भलाई के पथ पर फैली हुई ज्योति।

जी आर कवियुर 
08 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Saturday, November 8, 2025

क्या बताए,(ग़ज़ल)

क्या बताए,(ग़ज़ल)

दिल की तन्हाई क्या बताए,
इस दर्द की बात क्या बताए(2)

रात के सन्नाटों में खो गया मैं,
इस वीराने का हाल क्या बताए(2)

आँखों में बसी यादें चुभती हैं,
उन ख्वाबों की चोट क्या बताए(2)

हर पल तेरी कमी महसूस होती है,
इस दिल की तड़प क्या बताए(2)

हसरतों के मंजर अब भी याद हैं,
उन लम्हों की बात क्या बताए(2)

प्यार में डूबा, पर अधूरा रह गया,
इस दिल का फसाना क्या बताए(2)

जी आर कह रहा है, हर इक जज़्बात में,
इस दिल की दास्तां क्या बताए(2)

जी आर कवियुर 
08 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

ग़ज़ल: तेरी यादें मुझे सताएं

ग़ज़ल: तेरी यादें मुझे सताएं

ये ठंडी ठंडी रातें, तेरी यादें मुझे सताएं,
भीगी भीगी आँखें मेरी, तन्हा दिल को सताएं(2)

हर मोड़ पे तेरी बातें, मौसम बन के लौट आएं,
दिल की धड़कन सुन कर भी, तेरी चाहत मुझे सताएं(2)

खामोशी की चादर में, तेरी आहट गूँज जाए,
नींदों में भी तेरी सूरत, ख़्वाबों जैसे सताएं(2)

सागर की लहरें जैसे, किनारों को छू ना पाएं,
वैसे ही तेरे बिन अब, सांसें मेरी सताएं(2)

रूठे हुए ख़्वाब सारे, फिर तेरी याद बन जाएं,
हर अश्क में तेरी सूरत, आईना बन सताएं(2)

कब तक छुपा सकूंगा मैं, अपने दिल की ये तन्हाई,
हर लम्हा तेरी यादें, “जी आर” को फिर सताएं(2)

जी आर कवियुर 
07 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

दिल से दिल के रास्ते (ग़ज़ल )

दिल से दिल के रास्ते (ग़ज़ल )

दिल से दिल के रास्ते ढूँढ़ता चला,
दिलगी क्या बताऊँ, भटकता चला(2)

सांस में उसके नाम की खुशबू रही,
हर दुआ से मैं उसे माँगता चला(2)

चाँदनी ने भी रोकना चाहा मुझे,
उसकी गलियों में मैं बहकता चला(2)

ख़्वाब थे आँखों में, दिल था बेख़बर,
वो जहाँ कह गई, मैं समझता चला(2)

हर सितम को भी प्यार का नाम दे,
मुस्कुरा के मैं उसे चाहता चला(2)

अब 'जी आर' भी उसी में खो गया,
ज़िंदगी की तरह उसे पढ़ता चला(2)

जी आर कवियुर 
07 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

राम राम पाहिमाम्(भक्ति गीत )

राम राम पाहिमाम्
(भक्ति गीत – हिंदी)

राम राम पाहिमाम्,
मुकुन्द राम पाहिमाम्॥ (2)

घंटनाद गूंजे चारों ओर,
दिशाएँ सब थर्रा उठें।
राम नाम जपे हर प्राणी,
सब दुःख-द्वेष मिटें॥ (2)

राम राम पाहिमाम्,
मुकुन्द राम पाहिमाम्॥

सारा जग सुन ले यह भजन,
रावण का संहार हो।
राम का नाम ऊँचा उठे,
राम राज्य फिर साकार हो॥ (2)

राम राम पाहिमाम्,
मुकुन्द राम पाहिमाम्॥

शक्ति का ज्ञान सब पाएँ,
बलवान बनें हर जन।
सत्य की विजय सदा रहे,
सीता फिर हो पुनर्जन॥ (2)

राम राम पाहिमाम्,
मुकुन्द राम पाहिमाम्॥

हनुमान मार्ग में रक्षक हों,
भक्तों के मन में दीप जलें।
लव-कुश गाएँ राम कथा,
धरती पर धर्म फिर फले॥ (2)

राम राम पाहिमाम्,
मुकुन्द राम पाहिमाम्॥

मंदर और शूर्पणखा सब शांत हों,
अरविंद पुष्प खूब खिलें।
भारत में भरत वचन अमर हों,
अयोध्या फिर राम सँभालें॥ (2)

राम राम पाहिमाम्,
मुकुन्द राम पाहिमाम्॥

– जी. आर. कवियूर
06 नवंबर 2025
(कनाडा, टोरंटो) 

मेपल का सुर बजता रहे।

मेपल का सुर बजता रहे।

बर्फ़ की बूँदें गिरे और खामोशी गुनगुनाए,
खिड़की से सपनों का उजाला जाग उठे।
ठंडी आँसुओं में छुपे हैं कुछ नज़ारे,
दरवाज़े पर यादें चुपचाप तहरे।

छोटी दीपक की हल्की रौशनी में,
पंछियों का गीत मधुरता भर दे रात में।
फूलों वाला समय चाहे खो जाए कहीं,
प्रेम की गली दिल में हमेशा रहे कहीं।

जैसे गर्मी आए, बर्फ़ पिघलने लगे,
सुगंधित भोर में फूलों की याद जागे।
मिट्टी और हवा में घर की पुकार सुने,
सपनों की नदियाँ दिल में बहने लगे।

समय बदल जाए और गीत मिट जाएं,
यादों में हमेशा मेपल का सुर बजता रहे।

जी आर कवियुर 
05 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“मेपल का गीत”

“मेपल का गीत”

जब मेपल की पत्तियाँ लाल हो जाती हैं,
खामोश राहें भी गुनगुनाती हैं।
हवा के संग उड़ते हैं कुछ अफ़साने,
दिल में जागते हैं नए तराने।

ठंडी उँगलियाँ छूतीं हैं यादों को,
बर्फ़ की चाह फैलती है बादलों में।
धूपहीन रातें बढ़ती हैं चुपके,
मिट्टी की ख़ुशबू बुलाती है घर की ओर।

मेदम महीने में कोन्ना खिले पीले,
विशु की भोर चमके नए उजाले।
पंछियों की तान जगा दे मन,
प्रेम ही रहे सदा जीवन में अमन।

जी आर कवियुर 
05 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)


हर सुर में तेरा रंग है, (गीत)

हर सुर में तेरा रंग है, (गीत)

तेरे राग में खोया मैं, हर सुर में तेरा रंग है,
हर धड़कन तेरे नाम की, हर सांस में तेरा संग है।

तेरी मुस्कान की छाया में, मिलती है मुझे राहत,
तेरी आँखों की गहराई में, हर ख्वाब मेरा है साथ।

तेरे बिना ये शाम सुनी, तेरे बिना हर गीत अधूरा,
तेरी यादों की खुशबू से, महके मेरा हर नूरा।

तेरी आवाज़ की मिठास, गुनगुनाती मन की गलियों में,
हर धुन में तेरा एहसास, बिखरी है हवा की लहरों में।

तेरे इश्क़ की नमी में, भीगी हुई मेरी रूह है,
तेरे प्यार की छाँव में, हर दर्द मेरा दूर है।

जी.आर. कहता हूँ तेरे नाम, हर राग में बसा है प्यार,
तेरे सुरों की छाँव में ही, मुकम्मल हुआ मेरा संसार।

जी आर कवियुर 
03 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, November 5, 2025

आनंद का स्पर्श

आनंद का स्पर्श

निशब्दता में गूँजा एक हल्का स्वर,
हृदय में जन्मी एक शांति,
प्रत्येक श्वास की लय में नृत्य किया,
मन बादलों की तरह बहता गया।

पीड़ा गिरी बिखरे हुए फूलों की तरह,
स्मृतियाँ संगीत में बदल गईं,
प्रभात की किरणों में नहा कर,
आत्मसुख की कोमलता सामने आई।

एक दूर का प्रकाश बुलाया,
उस रोशनी में मैं विलीन हो गया,
सत्य के स्पर्श को महसूस किया —
मैंने भीतर स्वयं को जाना।

वहां शब्द हो गए मौन,
विचार हवाओं में बिखर गए,
केवल आत्मा बनी रही —
आनंद में मैं अकेला खड़ा।

जी आर कवियुर 
05 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अनंत की स्पर्श

अनंत की स्पर्श

स्मृतियों की गलियों में,
बीते कल का हाथ थामे,
मैं खोजता हूँ उस "मैं" को
जो शरीर के भीतर सोया है।

मौन में उठी आत्मा की गूंज,
श्वास में बहती एक यात्रा बनी,
विचार ढूँढते हैं अपना आसरा
रंगहीन उजालों की दिशा में।

समय से परे उस पल में
सत्य का स्पर्श मिल गया,
वहाँ देखा मैंने स्वयं को —
देह से परे, अनंत आत्मा में।

जी आर कवियुर 
05 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)


“बुढ़ापा – बस ख़ुद के लिए”

“बुढ़ापा – बस ख़ुद के लिए”

वक़्त बहा, साया संग सिमटा,
कोमल दिन अब मौन में लिपटा।
बिन पंखों के सपने सो गए,
दिल के भीतर स्वर खो गए।

बच्चे दूर, बस यादें रह गईं,
पुरानी किताबों में ख़ुशबू बस गई।
आँखों में अब धुंधली सी छवि,
हाथों में काँपती ज़िंदगी अभी।

अब दिल में मैं ही रह गया,
शांति का आलम छा गया।
वक़्त ने सिखाया — ख़ुद ही काफ़ी हूँ,
इस तन्हाई में सुकून पा लिया हूँ।

जी आर कवियुर 
05 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“जीवन का गीत”

“जीवन का गीत”

जीवन का गीत, प्रकृति में बहता,
दिल में मधुरता फैलता, हृदय गाता।(2)

बरसात की बूँदें गिरती हैं, मिट्टी की खुशबू फैलती है,
हवा की कोमल छुअन से गीत जन्म लेता है।
चाँदनी की छाँव में सपने नृत्य करते हैं,
पेड़ों की परछाइयों में यादें जागती हैं(2)

जीवन का गीत, प्रकृति में बहता,
दिल में मधुरता फैलता, हृदय गाता।

बहती नदी के किनारे हंसी खिलती है,
जब पंछी गाते हैं, दिल जीवित हो उठता है।
जहाँ फूल खिले हैं, वहाँ विचार उड़ते हैं,
सूरज की सुनहरी किरणें नए दिन को रोशन करती हैं(2)

जीवन का गीत, प्रकृति में बहता,
दिल में मधुरता फैलता, हृदय गाता।

जीवन का गीत, प्रकृति में बहता,
दिल में मधुरता फैलता, हृदय गाता।
तारे मुस्कुराते हैं और रात की कहानी सुनाते हैं,
बादल दूर हटते हैं, आशा बढ़ती है(2)

जीवन का गीत, प्रकृति में बहता,
दिल में मधुरता फैलता, हृदय गाता।

जीवन का गीत, प्रकृति में बहता,
दिल में मधुरता फैलता, हृदय गाता।
जीवन हर पल नई धुन में गाता है,
प्रकृति के संग मिलकर हृदय खिलता है(2)

जीवन का गीत, प्रकृति में बहता,
दिल में मधुरता फैलता, हृदय गाता।

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025

अधरों का स्पर्श

अधरों का स्पर्श

अधरों का स्पर्श हुआ प्रेम की घड़ी में,
रजनीगंधा खिला, नीरवता बरसी धीरे।

तारे मुस्कुराए, नभ हुआ आलोकित,
नयनों में सपनों ने ली अंगड़ाई।

पवन की ताल पर हृदय थरथराया,
चाँद ने छूकर मधुरता बिखेर दी।

लहरों संग जागा कोमल एहसास,
फुहारों ने दी ठंडी सी बाहों की आस।

शब्द बिना भी अर्थ उजागर हुआ,
वो पल स्वयं संगीत बन गया।

प्रेम उमड़ा असीम धारा बनकर,
दो दिल मिले, एक आकाश रच गया।

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025

“मृत्यु आ जा”

 “मृत्यु आ जा”

मृत्यु आ जा, जब मौन छा जाए गगन में,
हर जीव चले उसी अंतिम राह में।

फूल मुरझाएँगे, तारे भी बुझ जाएँगे,
समय का पहिया रुक न पाएगा कभी।

जब हवा थमे, तट हो जाए शांत,
नदियाँ भी पाएँगी एक दिन विश्राम।

गाने जो गाए गए, खो जाएँगे ध्वनि में,
अस्त होते सूरज संग उठेगी शांति।

जीवन तो बस सागर की एक लहर है,
मृत्यु आ जा — अनंत की डगर पर।

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025

“विरह का पल”

 “विरह का पल”

एक पल दिल से होकर गुज़र गया,
मौन शब्द कमरे में छिपे हैं कहीं।
यादें हवा में ठहरी सी लगतीं,
नज़रें खोजतीं हैं अनंत गगन में तन्हाई।

समय बढ़ता चला दूर दिशाओं तक,
आकांक्षा की लहरें मन में गूंजती हैं।
निशा पुकारती भूले सपनों को फिर,
तारे मुस्काते हैं मंद उजास में।

हर सांस में छिपा है एक दर्द गहरा,
क्षण धुंधले होकर खो जाते कहीं।
आशा झिलमिल करती फीकी किरण सी,
प्रेम अडिग रहता हर पल के पार।

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025

प्रेम की मौन शकुंतला


प्रेम की मौन शकुंतला

वन में शांतता फहराती है,
शकुंतला का हृदय प्रेम से खिलता है।
राजकुमार को देखा, आंखों में प्रकाश,
पुष्पमाला, चमेली की बेल खुशबू बिखेरती।

नदी किनारे पानी अपनी सुंदरता गाता,
पक्षी अनंत गीत गाते हैं।
चंदन की टहनी पर हंसी खिलती है,
छाया में बगीचे के फल मिठास फैलाते हैं।

गर्मी की रात में आंसू बहते हैं,
कुंए के जल में हृदय की लय झलकती है।
तुलसी की माला शांति फैलाती है,
कहानियाँ समय के हाथों में जीवित रहती हैं।

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025

“समय ने जो संभाला”

“समय ने जो संभाला”

समय ने जो संभाला, वो यादों की परछाइयाँ हैं,
बरसात की बूंदों सा दिल में उतरता एहसास है।
चाँदनी मुस्कुराती राहों पर कहीं,
एक नया सपना जन्म लेता है वहीं।

मिट्टी की ख़ुशबू में बीते पल महकते हैं,
नदी के सुरों में गीत बहते हैं।
गर्म हवाओं में सोचें उड़ जाती हैं,
ख़ामोशी में फिर मोहब्बत जग जाती है।

मुरझाए फूल भी कहानी सुनाते हैं,
स्पर्श से जीवन फिर खिल उठता है।
लहरों में यादें जागतीं कहीं,
समय ने जो संभाला, वो दिल में चमकता है।

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025

जब घड़ी पीछे मुड़ी उस रात

जब घड़ी पीछे मुड़ी उस रात

जब घड़ी पीछे मुड़ी उस रात,
जैसे वक़्त ने ली हो सौगात।
एक पल खोया, एक पाया,
फिर भी दिल ने कुछ न भुलाया।

दीप जले कुछ देर ज़्यादा,
साए बढ़े, हुआ सब आधा।
सपनों ने करवट बदली हल्की,
यादें लौटीं, धड़कन थमी।

पर वक़्त कभी लौटता नहीं,
भोर वही सोई, जगती नहीं।
एक घंटा पाया, सबने कहा—
पर मन का वक़्त कौन रुका?

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025

अलग-अलग ख्वाहिशें”

अलग-अलग ख्वाहिशें”

दूर की ख्वाहिशें आँखों में भर देती हैं आँसू
हृदय की छाँवें खोजती हैं हर एक दास्ताँ पूरा
समय भूल जाएगा दुख और पीड़ा
नई सुबह गाएगी दिल में एक नई कहानी

संध्या की हवाएँ खुशबू लेकर आती हैं
यादें पंक्तियों की तरह खिलती जाती हैं
छाँव में नदियाँ धीरे-धीरे बहती हैं
सपनों के बग़ीचे में प्रेम खिलता है

शहर की गलियाँ हवा में गीत गाती हैं
दिलों की धड़कनों में संगीत बहता है
दुख मिट जाए, गाँव में मुस्कान खिल जाए
जीवन के रास्ते पर आशा की रोशनी छा जाए

जी आर कवियुर 
(कनाडा, टोरंटो)
04 11 2025 

हर सुर में तेरा रंग है, (गीत)

हर सुर में तेरा रंग है, (गीत)

तेरे राग में खोया मैं, हर सुर में तेरा रंग है,
हर धड़कन तेरे नाम की, हर सांस में तेरा संग है।

तेरी मुस्कान की छाया में, मिलती है मुझे राहत,
तेरी आँखों की गहराई में, हर ख्वाब मेरा है साथ।

तेरे बिना ये शाम सुनी, तेरे बिना हर गीत अधूरा,
तेरी यादों की खुशबू से, महके मेरा हर नूरा।

तेरी आवाज़ की मिठास, गुनगुनाती मन की गलियों में,
हर धुन में तेरा एहसास, बिखरी है हवा की लहरों में।

तेरे इश्क़ की नमी में, भीगी हुई मेरी रूह है,
तेरे प्यार की छाँव में, हर दर्द मेरा दूर है।

जी.आर. कहता हूँ तेरे नाम, हर राग में बसा है प्यार,
तेरे सुरों की छाँव में ही, मुकम्मल हुआ मेरा संसार।

जी आर कवियुर 
03 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, November 3, 2025

आज खिल रहा है जीवन

आज खिल रहा है जीवन

आज खिल रहा है जीवन,
मुस्कान बिखेरो, आगे बढ़े मन(2)

मुरझाए सपनों को अब मत ढूंढो,
नए सवेरा में खुशबू बिखेरो।
बीती यादों को उड़ जाने दो,
नया गीत मन में गाने दो(2)

आज खिल रहा है जीवन,
मुस्कान बिखेरो, आगे बढ़े मन(2)

सुबह की हँसी फूल बन जाए,
भविष्य के भ्रम में मत सो जाए।
यह पल अमृत सा बह जाए,
जी लो इसे, मन मुस्काए(2)

आज खिल रहा है जीवन,
मुस्कान बिखेरो, आगे बढ़े मन।

धूप में सपनों की डोर बुनो,
बारिश में गीतों की छोर चुनो।
मेघों के साये हट जाने दो,
जीवन की राह बढ़ जाने दो(2)

आज खिल रहा है जीवन,
मुस्कान बिखेरो, आगे बढ़े मन।

जी आर कवियुर 
04 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)


तरंग अनमोल (ग़ज़ल)

तरंग अनमोल (ग़ज़ल)

तेरी साँसों से निकली सरगम, दिल में बसी तरंग अनमोल,
हर इक धड़कन कहती है अब, तू ही राग, तू ही गोल(2)

तेरी आँखों की झीलों में, झिलमिल करती रौशनी,
हर सुर में तेरा नाम लिखा, हर स्वर में तेरी बंदगी(2)

तेरे बिना ये शाम सुनी, तेरे बिना सवेरा फीका,
तेरी यादों के राग में ही, जीता हूँ मैं दीवाना सीखा(2)

तेरे होंठों से निकली तान, महके जैसे सावन रात,
हर नग़्मा तुझसे जन्म लिया, हर गीत में तेरा साथ(2)

तेरी ख़ुशबू से महके मौसम, तेरे आने से रौशन जहाँ,
तेरे इश्क़ की धुन में बँधा हूँ, जैसे वीणा का कोई गान(2)

‘जी. आर.’ कहे ये रूह मेरी, बस तुझमें ही साज़ है,
तू ही मेरा राग है साजन, तू ही मेरा नाज़ है(2)

जी आर कवियुर 
03 11 2025
(कनाडा,टोरंटो)

मगर तेरी याद न घटी (ग़ज़ल)

मगर तेरी याद न घटी (ग़ज़ल)

हर ग़म में खोया, मगर तेरी याद न घटी
दिल ने भुलाया बहुत, पर फ़रियाद न घटी(2)

रातों की चाँदनी में तेरा नाम लिखा
साँसों में महका वही, जो बात न घटी(2/

फूलों से सीखा है हमने सब्र का रंग
तू ना मिला फिर भी दिल की ज़ात न घटी(2)

राहों में ठहर गया वक़्त तेरी चाह में
धड़कनों की सदा में तेरी बात न घटी(2)

बरसों से जी.आर. ने लिखी तेरे नाम की ग़ज़ल
क़लम थम गई पर तेरा एहसास न घटी(2)

जी आर कवियुर 
02 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

आई थी, (ग़ज़ल)

आई थी, (ग़ज़ल)

वो तो खुशबू की तरह आई थी,
ज़ुल्फों से लहराई हवा आई थी(2)

मन के आँगन में हलचल सी थी,
शायद वही याद यहाँ आई थी(2)

सपनों में उसकी परछाई थी,
जैसे कोई राग सुनाई थी(2)

पत्तों ने भी कुछ कहा जैसे,
उसकी हँसी फिर सुनाई थी(2)

दिल ने माना वो पल सच्चा था,
जब उसकी छवि मुस्काई थी(2)

हर धड़कन में नाम वही है,
कह गया जी आर, वही आई थी(2)

जी आर कवियुर 
02 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

“दिव्य सान्निध्य में”

“दिव्य सान्निध्य में”

निशब्द जंगलों में, नदियों के मृदु प्रवाह में,
प्रभात सूर्य में और संध्या की मृदु रोशनी में,
ध्वनि रहित वहाँ का सान्निध्य फुसफुसाता है,
हर हृदय में, हर सांस में व्याप्त है।

पर्वत झुकते हैं, महासागर वहाँ की शक्ति में चमकते हैं,
तारे मृदुता से आकाश में नृत्य करते हैं,
सारी सृष्टि दिव्य संगीत में गाती है,
हर आत्मा वहाँ के पवित्र चिन्ह में बंधी है।

सर्वशक्तिमान, अनंत, महाशक्तिशाली,
सृजनकर्ता, जगत का उत्पत्तिकार,
विनाशक जो पुराने को मिटा नए के लिए,
उसके शाश्वत प्रकाश में सभी हृदय झुकते हैं।

जी आर कवियुर 
03 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Sunday, November 2, 2025

नवम्बर की यादें” ( ग़ज़ल)

नवम्बर की यादें” ( ग़ज़ल)

नवम्बर की हवा में कोई सदा बाकी है,
वो भीगी सी दुआ में तेरा पता बाकी है(2)

महेकती ज़मीन पे ख़ामोशियाँ उतरती हैं,
तेरे जाने के बाद भी एक अदा बाकी है(2)

हर सवेरे की धूप में तेरी झलक मिलती,
मेरे दिल के दरीचों में रोशनी बाकी है(2)

मिट गए हैं निशाँ सब बारिशों के साथ मगर,
हर बूँद में तेरे आने की सदा बाकी है(2)

न जाने क्यों हर ग़म में तेरा नाम आता,
जैसे साँसों में कोई तर्ज़-ए-वफ़ा बाकी है(2)

जी. आर. कहता है — यादों में वो मौसम अब भी,
नवम्बर की तरह दिल में नमी बाकी है(2)

जी आर कवियुर 
02 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)

देखते‑देखते मेरा दिल (ग़ज़ल)

देखते‑देखते मेरा दिल एक मयख़ाना बन गया,
दुःख और तन्हाई की खुशबू से जीना मुश्किल बन गया(2)

रातें लंबी हुईं और चाँद भी थम सा गया,
हर सिहरन में तेरी याद का जाम छलक गया(2)

दिल की तन्हाई में तेरी हँसी का रंग बसा,
सपनों की गलियों में बस तेरा नाम लिखा गया(2)

हर साँस में तेरी बातें, हर गीत में तेरी खुशबू,
अब तो मेरी धड़कन भी तुझसे ही भरपूर हो गया(2)

दूरियों के समंदर ने हमें अलग कर दिया,
फिर भी तेरी तस्वीर मेरे मन के आईने में उतर गई(2)

जी आर कहते हैं कि प्रेम का ये आलम सही,
तेरे बिना मेरी दुनिया अब सुनसान सही(2)

शायर बना डाला ( ग़ज़ल)

शायर बना डाला ( ग़ज़ल)

ये इश्क़ ने हमें क्या हाल में बना डाला,
हर लम्हा दर्द से दिल को सजा डाला(2)

नज़रों ने जब भी तेरा ज़िक्र किया दिल में,
आँखों के समुंदर को फिर से जला डाला(2)

वो ख़्वाब जो तेरे मिलने के थे सीने में,
तन्हाई ने उन्हें आँसू में घुला डाला(2)

हम मुस्कुराए तो लोगों ने समझा खुशी है,
किसे बताएं कि हमने ग़म को छला डाला(2)

तेरे बिना ये जहाँ सूना लगे हरदम,
दिल ने तेरा ख़याल आके रुला डाला(2)

अब मौत भी शर्माई मेरे हाल देखकर,
जीने की आरज़ू ने खुद को भुला डाला(2)

अब “जी आर” का हाल पूछे भी तो क्या कोई,
इश्क़ ने उस दीवाने को शायर बना डाला(2)

जी आर कवियुर 
01 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

ज़िंदगी का सफ़र

ज़िंदगी का सफ़र

मंज़िलें दूर नहीं,
आज या कल ही जाना है,
इधर से सबको,
ये जग तो बस ठिकाना है(2)

सब किरायेदार हैं यहाँ,
कोई अपना मकान नहीं,
हक़ीक़त समझो,
पर कोई पहचान नहीं(2)

इन इनायतों का मोल है,
पर कोई जानता नहीं,
जो आया है यहाँ,
वो ठहर पाता नहीं(2)

कुछ पल मुस्कुरा लो,
कुछ दुआएँ बाँट लो,
राह में मिलते हैं लोग,
उन्हें दिल से याद लो(2)

ज़िंदगी बस इतनी है,
साँसों की एक रवानी,
आज है तो कल नहीं,
यही सच्ची कहानी(2)

जी आर कवियुर 
31 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)

तेरी कृपा में खो गया,(सूफी ग़ज़ल)


 तेरी कृपा में खो गया,(सूफी ग़ज़ल)

दिल ने जब प्रणाम किया, तेरी कृपा में खो गया,
मैं नहीं अब मैं रहा, बस तेरे प्रेम में खो गया(2)

हर सुख तेरे नाम का है, हर दुख भी तेरा दान है,
पीड़ा भी अब गीत बन गई, तेरी कृपा में खो गया(2)

रात भर तेरी याद में, दीप मन में जलने लगे,
चाँद भी जैसे साथ चला, उस आराधन में खो गया(2)

श्वास की हर लय में अब, तेरा नाम ही गूंजता,
रूह का हर तार बँध गया, तेरे सान्निध्य में खो गया(2)

मंज़िलें सब मिट गईं, राहें उजियारी हो गईं,
जाने क्या हुआ मुझे, तेरी ममता में खो गया(2)

‘जी आर’ जब झुका वहाँ, ज्योति ही ज्योति छा गई,
वो भी शायद स्वयं नहीं, तेरी सूरत में खो गया(2)

जी आर कवियुर 
30 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)

मैं नहीं, सब कुछ भगवान करते हैं

मैं नहीं, सब कुछ भगवान करते हैं
उनकी कृपा में मैं जीवित हूँ
अहंकार मिटा, हृदय जागा
भगवान हमेशा मेरे साथ हैं(2)

जो मैंने सोचा, वह सब उनकी कृपा थी
फल की इच्छा नहीं, केवल प्रेम ही पर्याप्त
अब मेरा हृदय शांत है
हर कर्म में उनके दर्शन हैं(2)

मैं नहीं, सब कुछ भगवान करते हैं
उनकी कृपा में मैं जीवित हूँ
अहंकार मिटा, हृदय जागा
भगवान हमेशा मेरे साथ हैं

गुरु चरणों में मेरा प्रणाम
उन्होंने मुझे मार्ग दिखाया
विनय सिखाया, सत्य दिखाया
शक्ति नहीं, करुणा महान है(2)

मैं नहीं, सब कुछ भगवान करते हैं
उनकी कृपा में मैं जीवित हूँ
अहंकार मिटा, हृदय जागा
भगवान हमेशा मेरे साथ हैं

मेरी सेवा और प्रार्थना
भगवान के लिए बह रही है
दूसरों में भी मैं भगवान को देखता हूँ
उनकी उपस्थिति हर जगह है(2)

मैं नहीं, सब कुछ भगवान करते हैं
उनकी कृपा में मैं जीवित हूँ
अहंकार मिटा, हृदय जागा
भगवान हमेशा मेरे साथ हैं

फल की चिंता नहीं
फल का अर्थ भगवान ही हैं
आत्म-साक्षात्कार की राह पर
एक चमक मैंने देखी(2)

मैं नहीं, सब कुछ भगवान करते हैं
उनकी कृपा में मैं जीवित हूँ
अहंकार मिटा, हृदय जागा
भगवान हमेशा मेरे साथ हैं

जी आर कवियुर 
30 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)