Sunday, November 30, 2025
सुबह की बर्फबारी
Saturday, November 29, 2025
तलाशता हूँ (ग़ज़ल )
यादों का सिलसिला” (ग़ज़ल)
“ये इश्क़ भी क्या चीज़ है” (ग़ज़ल)
Friday, November 28, 2025
यादों में (ग़ज़ल)
‘तेरी ख़ामोशी में (ग़ज़ल)
स्मृतियों का खुला दरवाज़ा (ग़ज़ल)
बरसात (ग़ज़ल)
Thursday, November 27, 2025
कविता : मौन प्रहरी
कविता : मौन प्रहरी: एक क्रिसमस चिंतन
प्रस्तावना
ऊँचे नटक्रैकर के पास इतिहास, वीरता और उत्सव की खुशी मिलती है। यह लकड़ी का प्रहरी, क्रिसमस की खुशियों का प्रतीक, दूर के सैनिकों की यादें, विविध संस्कृतियाँ और शाश्वत परंपराएँ लेकर खड़ा है। शांत निरीक्षक महसूस कर सकता है कि कैसे अतीत और वर्तमान कोमल उत्सव में मिलते हैं।
कविता : मौन प्रहरी
ऊँचे नटक्रैकर के पास खड़ा एक शांत दृश्य,
कवच चमकता है पुरानी यादों के ज्वाल में।
क्रिसमस की खुशी नाचती है हर प्रकाश में,
गीतों और हंसी से भर जाते हैं हृदय रात में।
जर्मन सैनिकों की कथाएँ धीरे उठती हैं,
अमेरिकी गार्ड की शान सबकी आँखों में चमकती है।
भारतीय वीरता उभरती है रक्तरंजित मैदान में,
ढाल चमकती हैं इतिहास की जीवंत कहानी में।
लकड़ी का प्रहरी चमकता है उजाले में,
सांस्कृतिक पुल जोड़ता है दुनिया में।
इतिहास कहता है सेनापतियों की राह,
क्रिसमस फैलाए प्यार, खोलें हर दिल की चाह।
जी आर कवियुर
(27
11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)
भूमि में खिलना”
“पहाड़ी की चोटी पर”
मुक्ति दिवस”
कारवाँ है (ग़ज़ल)
“छः फ़ुट की सच्चाई”
Wednesday, November 26, 2025
अनंत की ओर
दिल की चिलमन से” (ग़ज़ल)
अकेला और दुकेला" (ग़ज़ल)
प्यार की रूहानी सफर (सूफी ग़ज़ल)
लोग कहते हैं भुला दो (ग़ज़ल)
Tuesday, November 25, 2025
पसंद आती है,(ग़ज़ल)
ये सफ़र (ग़ज़ल)
राम राम भजे मन
तूही मेरी आरजू हो (ग़ज़ल)
Monday, November 24, 2025
“सात रहस्य और नियम”
दीवाना बन गया (ग़ज़ल)
Sunday, November 23, 2025
चल रहा (ग़ज़ल)
Saturday, November 22, 2025
आग और मत बढ़ा, (ग़ज़ल)
“बरसती रातों में” (नीला गीत)
रात में (ग़ज़ल)
तेरी नैनों की झलक से (ग़ज़ल)
“ज़िन्दगी की सीख”(ग़ज़ल)
अकेले विचार – 127
Friday, November 21, 2025
आखिर इस दर्द का दवा क्या है (ग़ज़ल)
हम किसके इंतजार में जीते हैं (ग़ज़ल)
मौसम बदल गया (ग़ज़ल)
लहर उठा (ग़ज़ल)
तेरी मौजूदगी ( ग़ज़ल)
Thursday, November 20, 2025
कविता: दर्दनाक पलों का कुल योग
कविता: दर्दनाक पलों का कुल योग
प्रस्तावना
यह कविता कनाडा के टोरंटो में मिराबेला बिल्डिंग की बारहवीं मंज़िल से एक ठंडी और खामोश रात में देखे गए एक पल से पैदा हुई है।
आधी रात के आस-पास, बेडरूम की खिड़की के बाहर शहर का शांत नज़ारा अचानक तब बिखर गया जब नीचे सड़क पर एक एक्सीडेंट हुआ।
दूर से बजने वाले सायरन, चमकती इमरजेंसी लाइटें, और मुड़ी हुई मेटल को देखकर डर और दुख दोनों महसूस हुए।
नींद उड़ गई, और दिल पर एक बोझ सा महसूस हुआ जिसे शब्द उठाने की कोशिश कर रहे थे।
उस नाजुक पल में — अंधेरे और उम्मीद के बीच, सदमे और खामोशी के बीच — ये लाइनें निकलीं, जो रात की कांपती हुई शांति और उसके बाद हुई शांत प्रार्थना को दिखाती हैं।
कविता: दर्दनाक पलों का कुल योग
रात की ख़ामोशी टूटती गई,
रोशनी की लकीरें दिल को छूते ही,
सड़कों पर लोहा बिखरकर रोया।
खिड़की के बाहर कंपन उठते ही,
गहरी पीड़ा नीचे फैलती गई,
अँधेरा डर से भरता गया।
परछाइयाँ चारों ओर काँपती रहीं,
हवा में सिसकियाँ खोती गईं,
बिजली जैसी आँखें चमक उठीं।
नींद का पल दूर खिसकता गया,
सीने में भारी साँस उतर आई,
दुआ बनकर उम्मीद उभर आई।
जी आर कवियुर
23 11 2025/ 12:00 रात्रि
(कनाडा, टोरंटो)

