Sunday, November 2, 2025

ज़िंदगी का सफ़र

ज़िंदगी का सफ़र

मंज़िलें दूर नहीं,
आज या कल ही जाना है,
इधर से सबको,
ये जग तो बस ठिकाना है(2)

सब किरायेदार हैं यहाँ,
कोई अपना मकान नहीं,
हक़ीक़त समझो,
पर कोई पहचान नहीं(2)

इन इनायतों का मोल है,
पर कोई जानता नहीं,
जो आया है यहाँ,
वो ठहर पाता नहीं(2)

कुछ पल मुस्कुरा लो,
कुछ दुआएँ बाँट लो,
राह में मिलते हैं लोग,
उन्हें दिल से याद लो(2)

ज़िंदगी बस इतनी है,
साँसों की एक रवानी,
आज है तो कल नहीं,
यही सच्ची कहानी(2)

जी आर कवियुर 
31 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)

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