Wednesday, October 1, 2025

जीवन की राहों में

जीवन की राहों में

अगर न होता बीता कल,
क्या आज जन्म ले पाता?
और अगर आज भी खो जाता,
क्या कल कभी आ पाता?

इन लंबी अनजानी राहों पर,
पाँव कभी न डगमगाएँ,
संकेतों का मधुर संगीत,
सदा ही अमर हो जाए।

साँझ की हवा में खो गया,
सपनों का नन्हा राग,
परछाइयों-सा मिट गया,
अनुभव का हर एक स्वर।

दुख-सुख रहे दूर कहीं,
समय की लय में बहते हुए,
फिर भी दिल खोजता उजियारा,
उस पल में जो केवल एक ही बार।

मिट्टी के स्नेह की छाया में,
जीवन ने दिए कितने पाठ,
नवीनता से गगन को छूकर,
जीवन-यात्रा फिर से होगी आरंभ।

जी आर कवियुर 
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)


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