विरह की छाया में मैं,
मौन होकर तुम्हें याद करता हूँ।
स्मृतियाँ चारों ओर उड़ती हैं,
दिल के भीतर धीरे-धीरे बस जाती हैं।
फूल भी तुम्हारी मुस्कान जैसे,
छुपे हुए पलों में सच बयां करते हैं।
हवा में तुम्हारी यादों की खुशबू फैलती है,
मन में एक पीड़ा धीरे-धीरे उठती है।
जहाँ तुम नहीं हो वहाँ,
मैं तुम्हें ढूँढते हुए चलता हूँ।
रात की छाया में भी,
तुम्हारी यादें हमेशा मेरे साथ रहती हैं।
जी आर कवियुर
18 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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