Sunday, October 5, 2025

मेरी शाश्वत संगिनी — मेरी आत्मा की कविता





मेरी शाश्वत संगिनी — मेरी आत्मा की कविता 

कविता मेरी आस, मेरा विश्वास,
मन की छाँव बनी तू खास।
तेरे सुरों में खो गया मन,
मिला नया सा एक गगन।

मौन से जन्मी कोमल ध्वनि,
धड़कनों में गूँजे संगीत बनी।
दुख के तट पर लहर बन आई,
सपनों की बारिश संग लाई।

तू मेरी संतत सहचारिणी,
शब्दों की मधुर संगिनी।
प्रेमधारा बन बहती रहे,
दिल में सदा बसती रहे।

जी आर कवियुर 
05 10  2025
( कनाडा, टोरंटो)

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