किसीको भी पता न चला
चमेली के फूल खिले
तुम्हारे मन के गहराई में
बहार ने हलचल मचाई
छायाओं में बहती बूँदें
यादों में खुशबू बन गईं
हवा छू रही नीली जादू
हृदय की धड़कन जाग उठी
फूलों के द्वार खुलकर गाए
यादों की सरगम शांत हुई
क्षणों ने पंख फैलाए उड़ते हुए
चुंबन के सपनों में जन्म लिया
रंगों की आभा में एक स्पर्श
मौन राग प्रेम बनकर बिखर गया
चाँदनी के नीचे उजास
तुम्हारा चेहरा हृदय में चमका
किसीको भी पता न चला
चमेली के फूल खिले
नए सपनों की ओर तुम बढ़ रहे
पीड़ा की छाया में आनंद भर गया
जी आर कवियुर
13 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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