Wednesday, October 15, 2025

ग़ज़ल – "दीवाली की रात"

ग़ज़ल – "दीवाली की रात"

तेरे आने की ख़ुशबू थी उस दीवाली की रात,
मन में जगी थी फिर आशा उस दीवाली की रात(2)

दीयों के संग जब तेरी हँसी झिलमिलाई थी,
दिल ने लिखा था वो पंक्ति उस दीवाली की रात(2)

तू पास थी तो जग सारा जैसे थम-सा गया,
स्वप्नों में रंग भरे प्यारा उस दीवाली की रात(2)

तेरी बातों में मीठी सी रुनझुन बजती रही,
गीतों में ढल गई धारा उस दीवाली की रात(2)

अब भी जलते हैं दीपक पर तू नहीं पास है,
सूनी लगी हर उजियारा उस दीवाली की रात(2)

जी आर के मन में अब भी वो दीप जलते हैं,
यादों में फिर तेरा चेहरा उस दीवाली की रात(2)

✍️ जी आर कवियुर 
15 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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