जब मन के आकाश में बादल घिरते हैं,
यादें बरसात की बूँदों बनकर दिल पर गिरती हैं।
उसी मौन में जन्म लेती है “मन की मेघ मल्हार” —
भावनाओं की एक संगीत-यात्रा, बारिश की ताल पर लिखी कविता।
कविता - मन की मेघ मल्हार
बोल थम जाते हैं,
आँखें भर आती हैं,
भूल की चादर के पीछे
धीरे-धीरे लिखता हूँ मैं।
हवा की गर्जना में
ताल बनकर बरसती है धुन,
बारिश की बूँदों की झंकार में
मन खोकर बह जाता है।
कोहरे की चादर में
यादें मुस्कराती हैं,
समय के ठहरे पल में
दिल कविता बन जाता है।
मोरपंख के टुकड़ों-से
विचार बहते चले आते हैं,
मन के किनारों तक
बिन ताल की लहरों जैसे।
जब आसमान धूसर होता है,
अंतर मन नीला हो जाता है,
बादलों के पीछे छिपी
एक मुस्कान को खोजता हूँ मैं।
जब बादल दूर चले जाते हैं,
मन उजियारा बन जाता है,
बरसात के बाद की मिट्टी की खुशबू-सा
नया जीवन साँस लेता है।
जी आर कवियुर
11 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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