जीवन संध्या में
जीवन की संध्या में, पलकों को धीरे खोला,
सबिता की नज़रों में एक शांत प्रकाश खिलता है।
बीते दिनों की राहों पर,
स्मृतियाँ फूलों की तरह गिरती हैं,
सबिता के हाथों में संभाली हुई।
सूरज की मद्धम छाया में,
सपने धीरे-धीरे लहराते हैं,
जब हम हाथ में हाथ डालकर चलते हैं।
जहाँ कभी आँसुओं के निशान थे,
आज वहाँ सबिता की मुस्कानों का आवरण है।
अंतिम गीत धीरे गूँजता है,
हृदय को उसकी मौजूदगी में शांति से भर देता है।
जीवन की संध्या, एक कविता की तरह,
मौन में हमारे लिए संगीत बिखेरती है।
जी आर कवियुर
03 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)

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