धीरे से लहराता, मेरा मन जागा,
सपने उठे धीरे-धीरे भीतर।
अनकही प्रेम की लहरें फैलीं,
सुख का आंगन अब खुला(2)
जब तुम जीवन में संग आए,
सवेरे की तरह मुस्कान बरसी।
बचे हुए आँसू अब जाग गए,
मधुरता बहती है जहाँ तुम हो(2)
खुशी की धुन भरी हृदय में,
दिन की शांति में भी गूँजती।
नज़रों में हल्की लालसा चमकी,
यादें बरसीं नरम झरनों सी(2)
जी आर कवियुर
19 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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