तेरी नज़रों की ख़ुशबू से महके फ़ज़ा,
हम वहीं रात-दिन जलते रहे(2)
तेरे कदमों की आहट जो आई कभी,
हम दुआ बनके गिरते रहे(2)
हर ख़त में तेरी तसवीर उभर आई,
हम हर सफ़्हे पे सजते रहे(2)
तेरे जाने की आहट ने तोड़ा सुकून,
हम ख़ुद से ही लिपटते रहे(2)
हर ग़म को तेरे नाम से जोड़ा हमने,
तेरे बिन भी तुझे कहते रहे(2)
जी आर की ग़ज़ल में तेरा ही असर,
हम तेरी याद में लिखते रहे(2)
जी आर कवियुर
16 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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