कल अगर न होता तो आज भी कहाँ होता,
हर सफ़र का मुक़ाम तो वक़्त की रज़ा होता।
इन लंबी राहों में ठोकरें हज़ार मिलती हैं,
मगर हौसला हो तो मंज़िलें जवाँ होता।
सुख-दुख की धड़कनों में राग एक ही बसता,
ये जीवन तो इक चलती हुई सदा होता।
ख़्वाबों की धुन हवा में बिखर भी जाए चाहे,
यादों का हर साज़ हमेशा ग़ुंजा होता।
समय की धार में इंसान बहता जाता है,
हर लम्हा नए सफ़र का इशारा होता।
'जी आर' के दिल में अब भी उजाला ज़िंदा है,
हर अंधेरे के बाद नया सवेरा होता।
जी आर कवियुर
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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