सुगंध बिखरती पुष्पों की तरह
मन के हरे मैदान में
समय बनाता है मौन किले
छोड़ता है बीते पलों के निशान
विचार जड़ पकड़े खड़े हैं
फिर भी हल्की रोशनी में सोते हैं
शब्दों के बादल ऊपर तैरते हैं
अक्षर बन जाते हैं शाश्वत चिन्ह
मौन फैलाता है कोमल आवरण
लहरें शांति को दूर रखती हैं
भीगी यादों के टापुओं पर
प्रकृति की बदलती आकांक्षाएँ खोजती हैं
मौन बारिश में दिल डूबता है
मौसम के आँसू बह जाते हैं
रंगहीन सपने भटकते हैं
शांति के प्रमाण की तलाश में
जी आर कवियुर
06 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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