तन्हाई की रात थी, दिल भी अकेलता था,
यादों का सहारा था, अकेला ही अकेला था(2)
तेरे बिना वो चाँद भी कुछ धुंधला-सा लगता था,
सितारों की महफ़िल में तेरा ही नूर जलता था(2)
हवा में तेरी ख़ुशबू थी, सन्नाटा भी कहता था,
हर सांस तेरी याद में एक नज़्म-सा बहता था(2)
वो लम्हे तेरे साथ के अब ख़्वाबों में मिलता था,
हर ख्वाब की तह में भी बस तेरा असर रहता था(2)
जब सन्नाटा गहराता था, दिल आहें भरता था,
हर लफ़्ज़ में, हर सुर में तेरा नाम गूंजता था(2)
जी आर के दिल में अब भी तेरा ही आलम था,
हर दर्द में, हर ख़ुशी में बस तू ही शामिल था(2)
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