यादें बुनती हैं चुपके-चुपके पल
हजारों सपने खिले फूलों की तरह
एक पल जो कभी लौटकर न आए
तुम मेरी कोमल सोच में समाए
मधुर गीत जैसे ओस में खिलते
आसमान के पंछी भी गुनगुनाते
क्षण भले ही बदल जाएं
तुम मेरे दिल में बारिश बनकर बरसते
सुबह लाती है विरह में शांति
नीले आकाश की तरह, तुम और मैं
इन राहों में तुम्हारी मौजूदगी
भोर में फूलों की तरह खिलती है
जी आर कवियुर
06 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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