Friday, October 10, 2025

बाग़ की फुसफुसाहट

बाग़ की फुसफुसाहट


ठंडी बारिश में बिखरे फूलों के पंखुड़ियाँ,

सुगंध बहती हवा में, मन को भाए।

जंगल की ठंडी छाँव धीरे छूती है,

बिजली और सांझ साथ मिलकर गाती हैं।


हरे पत्तों पर ठंडी कली खिलती है,

रात की पीली रोशनी धीरे-धीरे चमकती है।

नदियों में सपनों के गीत उठते हैं,

चट्टानों पर पक्षी अपनी शरण ढूँढते हैं।


पंख फैलाकर, फूलों का उत्सव मनाते हैं,

सूरज की किरणें हवा में परछाइयाँ बनाती हैं।

दिल की मिठास प्यार में बहती है,

वातावरण शांति से सपनों में बहता है।



जी आर कवियुर 

10 10 2025

(कनाडा, टोरंटो)


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