Saturday, October 4, 2025

शरद ऋतु की आशा

शरद ऋतु की आशा

झील किनारे जब सवेरा होता,
सुनहरा रंग आसमाँ में रोता।
बादल छूते दूर इमारतों को,
सूरज हँसता जीवन की राहों को।

गिरते मेपल पत्ते लाल,
सर्द हवा का पहला ख्याल,
शीत करीब है फिर भी मन,
गाता रहता प्रेम राग बन।

हवा में कोई मधुर गान है,
शहर भी जैसे पहचान है,
क्षण बीत जाएँ, सपने रहें,
हृदय की धड़कन में बसे।

हाई पार्क की पगडंडी में,
पतझर की खुशबू बंदी में,
दिन ढले तो भी मन कहे —
प्रेम सदा जीवित रहे।

हर पत्ता जो झर जाता है,
नया संदेश दे जाता है,
शरद घटे तो भी मन में,
वसंत फिर आ जाता है।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)


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