गहरी रात की निस्तब्धता में,
आँसू बहे उदासी की गाथा में।
यादों की लहरें उमड़ती जाएँ,
मन सवालों में उलझे रह जाए।
टूटे सपनों की सूनी डगर,
दर्द की प्रतिध्वनि गूँजे भीतर।
एकांत में प्रश्न उमड़ते भारी,
आत्मा ढूँढे सांत्वना प्यारी।
पर आँसुओं की गहराई में,
आशा का बीज छिपा कहीं।
विश्वास की ज्योति जब जगती,
अंधियारा राहों से हटती।
जी आर कवियुर
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)
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