हर तरफ़ अंधेरे हैं, पर दिल में चराग़ है,
उम्मीद की राहों पे अब भी ये दिमाग़ है।
राहों में बिछे काँटे, तूफ़ान कई आए,
फिर भी मेरा क़दम बस मंज़िल के लिए है।
तन्हाई का आलम भी मीठा-सा लगे अब,
तेरी ही दुआओं का शायद ये असर है।
ग़म से भी गले मिलकर सीखा है मुस्कुराना,
हर दर्द में छुपा एक जीने का हुनर है।
'जी आर' का यक़ीन है, कल फिर सवेरा होगा,
इंतज़ार की आँखों में रौशन ये ख़बर है।
जी आर कवियुर
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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