Tuesday, October 7, 2025

हिमबिंदु

हिमबिंदु 

भोर में जब हिमबिंदु झरते,
चंपा पत्तों पर रंग न उतरते,
मौन की गहराई में कहीं,
मोती-सा कण झिलमिल भरते।

ठंडी मुस्कान बह चली धीरे,
मन में कोई सपना खिले,
धुंध की कोमल छूअन से,
प्रेम की बूंदें जाग उठे।

सूरज की किरणें जब छू जाएँ,
हिम पिघले मन की राहों में,
हर पल गुनगुन कहता जाए —
जीवन का स्पंदन गहराए।

जी आर कवियुर 
07 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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