Thursday, October 30, 2025

दे गई दर्द, ( ग़ज़ल)

दे गई दर्द, ( ग़ज़ल)

दिल में बस गई याद, दे गई दर्द,
हर एक सांस में बात, दे गई दर्द।(2)

वो चुप रही तो सदा बन गई ख़्वाब,
ख़्वाबों की हर बरसात, दे गई दर्द।(2)

रातों में जागते तारे भी रोए,
तन्हाई की वो रात, दे गई दर्द।(2)

लब पर दुआ थी मगर नम हुई आँख,
हर लफ़्ज़ की सौग़ात, दे गई दर्द।(2)

मंज़िल मिली न सफ़र भी न पूरा,
राहों की वो सौग़ात, दे गई दर्द।(2)

अब भी महकता है दिल उस हवाओं में,
जो उसकी थी सौग़ात, दे गई दर्द।(2)

“जी आर” ने जब भी लिखी तेरी यादें,
हर शेर, हर जज़्बात, दे गई दर्द।(2)

जी आर कवियुर 
29 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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