Friday, October 3, 2025

मरीचिका

मरीचिका

दूर की झलक में परावर्तन चमके,
आँखों में नर्म सा प्रकाश झलके।

हवा की लहरें बहती शांत मन,
सपने दें हृदय को मधुर स्वर की धुन।

जंगल में छुपा उजियारा कुछ,
नदियों में खोजें उत्तर सुखदुख।

अस्पर्श प्रतीक भी चमकते राहों में,
स्मृति के तारे जगमगाएँ पलों में।

संध्या के रंग में बदलती छटा,
रंग बिखरे वन में हर दिशा छटा।

मन की राह जो इंतजार में खड़ी,
मरीचिका की छाया खोजे अंतिम तट यही।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)


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